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ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 55/ मन्त्र 1
यवं॑यवं नो॒ अन्ध॑सा पु॒ष्टम्पु॑ष्टं॒ परि॑ स्रव । सोम॒ विश्वा॑ च॒ सौभ॑गा ॥
स्वर सहित पद पाठयव॑म्ऽयवम् । नः॒ । अन्ध॑सा । पु॒ष्टम्ऽपु॑ष्टम् । परि॑ । स्र॒व॒ । सोम॑ । विश्वा॑ । च॒ । सौभ॑गा ॥
स्वर रहित मन्त्र
यवंयवं नो अन्धसा पुष्टम्पुष्टं परि स्रव । सोम विश्वा च सौभगा ॥
स्वर रहित पद पाठयवम्ऽयवम् । नः । अन्धसा । पुष्टम्ऽपुष्टम् । परि । स्रव । सोम । विश्वा । च । सौभगा ॥ ९.५५.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 55; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
विषय - अब परमात्मा के अनन्तत्व अनेकवस्तुजनकत्व आदि गुणों का वर्णन करते हैं।
पदार्थ -
(सोम) हे परमात्मन् ! आप (नः) हमारे लिये (अन्धसा) अन्नादिकों के सहित (पुष्टं पुष्टम्) अति बलप्रद (यवं यवम्) संचित अनेक पदार्थों को तथा (विश्वा च सौभगा) सम्पूर्ण सौभाग्य को (परिस्रव) उत्पन्न करिये ॥१॥
भावार्थ - सम्पूर्ण ऐश्वर्य और सम्पूर्ण सौभाग्य को देनेवाला एकमात्र परमात्मा ही है, कोई अन्य नहीं ॥१॥
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