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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 17
    ऋषिः - त्रित ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    शि॒वो भू॒त्वा मह्य॑मग्ने॒ऽअथो॑ सीद शि॒वस्त्वम्। शि॒वाः कृ॒त्वा दिशः॒ सर्वाः॒ स्वं योनि॑मि॒हास॑दः॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शि॒वः। भू॒त्वा। मह्य॑म्। अ॒ग्ने॒। अथो॒ऽइत्यथो॑। सी॒द॒। शि॒वः। त्वम्। शि॒वाः। कृ॒त्वा। दिशः॑। सर्वाः॑। स्वम्। योनि॑म्। इ॒ह। आ। अ॒स॒दः॒ ॥१७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शिवो भूत्वा मह्यमग्नेऽअथो सीद शिवस्त्वम् । शिवः कृत्वा दिशः सर्वाः स्वं योनिमिहासदः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    शिवः। भू्त्वा। मह्यम्। अग्ने। अथोऽइत्यथो। सीद। शिवः। त्वम्। शिवाः। कृत्वा। दिशः। सर्वाः। स्वम्। योनिम्। इह। आ। असदः॥१७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 17
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    पदार्थ -

    १. प्रभु त्रित से कहते हैं हे ( अग्ने ) = उन्नतिशील त्रित [ त्रीन् तरति = तीनों बन्धनों को तैर जानेवाले ] ( शिवः भूत्वा ) = सबके लिए कल्याणकर होकर ( शिवः ) = कल्याणस्वरूप ( त्वम् ) = तू ( अथ ) = अब ( उ ) = निश्चय से ( मह्यम् ) = मेरे लिए ( सीद ) = स्थित हो। इस अर्थ में निम्न बातें स्पष्ट हैं—[ क ] औरों के कल्याण करने से अपना कल्याण होता है। [ ख ] औरों का कल्याण करके ही प्रभु की उपासना होती है। ‘सर्वभूतहिते रतः’ पुरुष ही तो प्रभु का भक्त है। २. ( सर्वाः दिशः ) = सब दिशाओं को, सब दिशाओं में स्थित प्राणियों को ( शिवाः कृत्वा ) = कल्याणयुक्त करके, अर्थात् उनके दुःखों को दूर करके ( इह ) = इस मानव-जीवन में तू ( स्वं योनिम् इह आसदः ) = अपने घर में आसीन हो। हमारा वास्तविक घर ब्रह्मलोक है, अतः अर्थ यह हुआ कि तू मानवहित करके ब्रह्मलोक को प्राप्त करनेवाला बन। अथवा ‘योनि’ शब्द का अर्थ सामान्य घर लें तो अर्थ होगा कि सब प्राणियों का कल्याण किये बिना तू घर में मौज से न बैठ। सबका भला करके ही घर में आ।

    भावार्थ -

    भावार्थ — त्रित सबका भला करता हुआ ‘शिव’ बनने का प्रयत्न करता है। औरों को शिव बनाये बिना हम शिव नहीं बन सकते।

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