यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 18
ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः
देवता - गृहपतिर्देवता
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
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ह॒वि॒र्धानं॒ यद॒श्विनाग्नी॑ध्रं॒ यत्सर॑स्वती। इन्द्रा॑यै॒न्द्रꣳसद॑स्कृ॒तं प॑त्नी॒शालं॒ गार्ह॑पत्यः॥१८॥
स्वर सहित पद पाठह॒वि॒र्धान॒मिति॑ हविः॒ऽधान॑म्। यत्। अ॒श्विना॑। आग्नी॑ध्रम्। यत्। सर॑स्वती। इन्द्रा॑य। ऐ॒न्द्रम्। सदः॑। कृ॒तम्। प॒त्नी॒शाल॒मिति॑ पत्नी॒ऽशाल॑म्। गार्ह॑पत्य॒ इति॒ गार्ह॑ऽपत्यः ॥१८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
हविर्धानँयदश्विनाग्नीध्रँयत्सरस्वती । इन्द्रायैन्द्रँ सदस्कृतम्पत्नीशालङ्गार्हपत्यः ॥
स्वर रहित पद पाठ
हविर्धानमिति हविःऽधानम्। यत्। अश्विना। आग्नीध्रम्। यत्। सरस्वती। इन्द्राय। ऐन्द्रम्। सदः। कृतम्। पत्नीशालमिति पत्नीऽशालम्। गार्हपत्य इति गार्हऽपत्यः॥१८॥
विषय - घर में चार आवश्यक कार्य
पदार्थ -
१. (यत्) = यदि (अश्विना) = प्राणापान अपेक्षित हैं तो आवश्यक है कि हम 'हविर्धानं' अग्निकुण्ड में हवि का आह्वान करें, अर्थात् घर में नियम से अग्निहोत्र करें। इससे वायुशुद्धि, रोग- अभिसंहार होकर प्राणापान शक्ति में वृद्धि होगी। २. (यत्) = यदि हम (सरस्वती) = ज्ञान की अधिदेवता की आराधना करना चाहते हैं, अर्थात् ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं, तो (आग्नीध्रम्) = अग्नीध्र की शरण में जाएँ। यह 'अग्नीध्र' आचार्य है। यह विद्यार्थी में ज्ञानाग्नि का आधान करता है। वेद में अन्यत्र यही भावना 'अग्निनाऽग्निः समिध्यते' इन शब्दों में कही गई है । ३. (इन्द्राय) = इन्द्र बनने के लिए, अर्थात् आत्मशक्ति के विकास के लिए (ऐन्द्रं सदः कृतम्) = परमेश्वर की उपासना का गृह बनाया गया है। घर में एकान्त शान्त स्थान का निर्माण हुआ है। यहाँ बैठकर यह 'हैमवर्चि: ' प्रभु का उपासन करता है और अपने अन्दर उस प्रभु की शक्ति को प्रवाहित करने का प्रयत्न करता है। प्रभु की शक्ति से सम्पन्न होकर ही यह 'इन्द्र' बन पाता है। ४. एवं घर में एक 'हविर्धान' अग्निहोत्र करने का स्थान है, यह हमारी प्राणापान की शक्ति के वर्धन का कारण बनता है। (अग्नीध्र) = आचार्य के समीप बैठने का स्थान है, यह हमारी ज्ञानवृद्धि का कारण होता है । (ऐन्द्रम्) = प्रभु के उपासन का स्थान है, यह हमारी आत्मिक शक्ति की वृद्धि करनेवाला होता है। इन सबके अतिरिक्त (पत्नीशालम्) = एक पत्नी की शाला है। यह (गार्हपत्यः) = गार्हपत्य है, जहाँ घर के सब लोगों के रक्षण के लिए अन्नपाचन आदि कार्य सिद्ध होते हैं।
भावार्थ - भावार्थ- हमारा घर हविर्धान हो, अग्नीध्र, ऐन्द्रसदस् तथा पत्नीशाल हो। उसमें अग्निहोत्र, आचार्यों से ज्ञानोपार्जन, प्रभु का उपासन तथा गृह सम्बन्धी कार्य उत्तमता से चलते रहें।
- सूचना - ' पत्नीशालं गार्हपत्यः' शब्द से यह बात स्पष्ट है कि पत्नी का स्थान घर में है, उसे गृहकृत्यों में निपुण बनकर घर के कार्यों को उत्तमता से करना है।
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