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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 50
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - पितरो देवताः छन्दः - विराट् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    अङ्गि॑रसो नः पि॒तरो॒ नव॑ग्वा॒ऽअथ॑र्वाणो॒ भृग॑वः सो॒म्यासः॑। तेषां॑ व॒यꣳ सु॑म॒तौ य॒ज्ञिया॑ना॒मपि॑ भ॒द्रे सौमन॒से स्या॑म॥५०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अङ्गि॑रसः। नः॒। पि॒तरः॑। नव॑ग्वा॒ इति॒ नव॑ऽग्वाः। अथ॑र्वाणः। भृग॑वः। सो॒म्यासः॑। तेषा॑म्। व॒यम्। सु॒म॒ताविति॑ सुऽम॒तौ। य॒ज्ञिया॑नाम्। अपि॑। भ॒द्रे। सौ॒म॒न॒से। स्या॒म॒ ॥५० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अङ्गिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वाणो भृगवः सोम्यासः । तेषाँवयँ सुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे स्याम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अङ्गिरसः। नः। पितरः। नवग्वा इति नवऽग्वाः। अथर्वाणः। भृगवः। सोम्यासः। तेषाम्। वयम्। सुमताविति सुऽमतौ। यज्ञियानाम्। अपि। भद्रे। सौमनसे। स्याम॥५०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 50
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    पदार्थ -
    (नः) = हमारे (पितरः) = पिता-पितामह व प्रपितामह (अंगिरसः) = अङ्ग प्रत्यङ्ग में रसवाले हैं। बड़े स्वस्थ हैं, पूर्व मन्त्र के शब्दों में प्राणशक्ति सम्पन्न हैं । २. (नवग्वा) = अतएव नवम दशक तक ९०-१०० साल के आयुष्य तक जानेवाले हैं, अथवा (नवा ग्वा) = नवमी व स्तोतव्य गतिवाले हैं, इनका आचरण अत्यन्त प्रशस्य है। ३. (अथर्वाणः) = [न थर्वति:= चरतिकर्मा] स्तुतिनिन्दा, लाभालाभ व जीवन-मृत्यु के कारण नीतिमार्ग से कभी भी विचलित होनेवाले नहीं। ४. (भृगवः) = अपने ज्ञान को परिपक्व करनेवाले हैं ५. परिणामत: (सोम्या:) = अत्यन्त सौम्य स्वभाव के हैं । ६. (वयम्) = हम (तेषाम्) = उन (यज्ञियानाम्) = [यज्ञे हिताः] सदा उत्तम कर्मों में लगे हुए पितरों की सुमतौ कल्याणी बुद्धि में स्याम हों। उनकी प्रेरणाएँ व उनका जीवन हमें उत्तम प्रेरणाएँ दे, हमें सद्बुद्धि प्राप्त कराए। (अपि) = और हम सदा (भद्रे) = कल्याणकारक (सौमनसे) = शोभन मनस में, मन की उत्तम स्थिति में स्याम निवास करें। हमारा मन सदा सुप्रसन्न हो। उसमें किसी प्रकार के ईर्ष्या-द्वेषादि मलों का सम्भव न हो तथा हम सदा सभी के कल्याण की कामना करें, हमारा मन अभद्र न हो।

    भावार्थ - भावार्थ- पितरों की विशेषताएँ ये हैं-वे स्वस्थ हैं [अङ्गिरसः], सदाचारी हैं [नवग्वाः], स्थिरवृत्ति के हैं [अथर्वाण:], सद्ज्ञान से परिपक्व विचारोंवाले हैं [भृगवः] तथा सौम्य [विनीत] हैं। हम सब इन पितरों की सुमति व सौमनस में स्थित हों।

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