Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 50
    ऋषिः - गर्ग ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - विराट् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    0

    त्रा॒तार॒मिन्द्र॑मवि॒तार॒मिन्द्र॒ꣳ हवे॑हवे सु॒हव॒ꣳ शूर॒मिन्द्र॑म्। ह्वया॑मि श॒क्रं पु॑रुहू॒तमिन्द्र॑ꣳ स्व॒स्ति नो॑ म॒घवा॑ धा॒त्विन्द्रः॑॥५०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रा॒तार॑म्। इन्द्र॑म्। अ॒वि॒तार॑म्। इन्द्र॑म्। हवे॑हव॒ इति॒ हवे॑ऽहवे। सु॒हव॒मिति॑ सु॒ऽहव॑म्। शूर॑म्। इन्द्र॑म्। ह्वया॑मि। श॒क्रम्। पु॒रु॒हू॒तमिति॑ पुरुऽहू॒तम्। इन्द्र॑म्। स्व॒स्ति। नः॒। म॒घवेति॑ म॒घऽवा॑। धा॒तु॒। इन्द्रः॑ ॥५० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रँ हवेहवे सुहवँ शूरमिन्द्रम् । ह्वयामि शक्रम्पुरुहूतमिन्द्रँ स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्रातारम्। इन्द्रम्। अवितारम्। इन्द्रम्। हवेहव इति हवेऽहवे। सुहवमिति सुऽहवम्। शूरम्। इन्द्रम्। ह्वयामि। शक्रम्। पुरुहूतमिति पुरुऽहूतम्। इन्द्रम्। स्वस्ति। नः। मघवेति मघऽवा। धातु। इन्द्रः॥५०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 50
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    १. प्रस्तुत मन्त्रों का ऋषि 'गर्ग' है, जो [गिरति] शत्रुओं को निगल जाता है। राष्ट्र पर आक्रमण करनेवाले शत्रुओं को समाप्त करके राष्ट्र के (त्रातारम्) = रक्षक (इन्द्रम्) = शत्रुओं के मार भगानेवाले राजा को और अतएव (अवितारम्) = [ अव प्रीणने] प्रजा का प्रीणित करनेवाले (इन्द्रम्) = राजा को २. (हवेहवे) = प्रत्येक संग्राम में सुहवम् सुगमता से बुलाये जानेवाले, (शूरम्) = शत्रुओं की हिंसा करनेवाले [शृ हिंसायाम् ] (इन्द्रम्) = इन्द्रियों के अधिष्ठता, जितेन्द्रिय राजा को ३. जितेन्द्रियता के कारण ही (शक्रम्) = [ शक्नोति इति शक्र:] राष्ट्र की रक्षा करने में समर्थ, (पुरुहूतम्) = बहुत-से पुकारे गये, सत्कार किये गये (इन्द्रम्) = इस परमैश्वर्यशाली राजा को ह्वयामि इस सिंहासन पर बैठने व बैठकर राज्य करने के लिए पुकारता हूँ। ४. यह (इन्द्रः) = शत्रुओं का विद्रावक, इन्द्रियों का अधिष्ठाता (मघवा) = पापशून्य ऐश्वर्यवाला, कर आदि से प्राप्त उचित धन को यज्ञादि उत्तम कर्मों में व्ययित करनेवाला और अतएव (मघवा) = मघवान् कहलानेवाला यह राजा (नः) = हममें (स्वस्ति) = कल्याण को (धातु) = स्थापित करे।

    भावार्थ - भावार्थ- राजा राष्ट्र की उत्तमता से रक्षा करे और प्रजा के कल्याण की साधना करें।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top