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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 34
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - प्रजा देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    द्विप॑दा॒ याश्चतु॑ष्पदा॒स्त्रिप॑दा॒ याश्च॒ षट्प॑दाः। विच्छ॑न्दा॒ याश्च॒ सच्छ॑न्दाः सू॒चीभिः॑ शम्यन्तु त्वा॥३४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्विप॑दा॒ इति॒ द्विऽप॑दाः। याः। चतु॑ष्पदा॒ इति॒ चतुः॑ऽपदाः। त्रिप॑दा॒ इति॒ त्रिऽप॑दाः। याः। च॒। षट्प॑दा॒ इति॒ षट्ऽप॑दाः। विच्छ॑न्दा॒ इति॒ विऽच्छ॑न्दाः। याः। च॒। सच्छ॑न्दा॒ऽइति॒ सच्छ॑न्दाः। सू॒चीभिः॑। श॒म्य॒न्तु॒। त्वा॒ ॥३४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्विपदा याश्चतुष्पदास्त्रिपदा याश्च षट्पदाः । विच्छन्दा याश्च सच्छन्दाः सूचीभिः शम्यन्तु त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    द्विपदा इति द्विऽपदाः। याः। चतुष्पदा इति चतुःऽपदाः। त्रिपदा इति त्रिऽपदाः। याः। च। षट्पदा इति षट्ऽपदाः। विच्छन्दा इति विऽच्छन्दाः। याः। च। सच्छन्दाऽइति सच्छन्दाः। सूचीभिः। शम्यन्तु। त्वा॥३४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 34
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    पदार्थ -
    १. (द्विपदाः) = जो छन्द की जातियाँ दो चरणोंवाली हैं (याः) = जो (चतुष्पदाः) = चार चरणोंवाली हैं त्रिपदाः जो तीन चरणोंवाली हैं (याः च) = और जो (षट्पदाः) = छह चरणोंवाली हैं, (विच्छन्दाः) = जो छन्दोंरहित विषमाक्षर गद्यरूप हैं (याः च) = और जो (सच्छन्दाः) = छन्दोंयुक्त हैं, वे सब (सूचीभिः) = विविध उपदेशों की सूचनाओं से (त्वा) = तुझे (शम्यन्तु) = शान्ति देनेवाली हों। २. द्विपद छन्दों की सूचना है कि तू 'ज्ञान व कर्म' इन दोनों को अपनानेवाला हो। ये एक पक्षी के दो पंखों की भाँति हैं। जैसे पक्षी किसी एक पंख से आकाश में उड़ नहीं सकता, इसी प्रकार तू अकेले ज्ञान वा अकेले कर्म से उड़ न सकेगा। ३. चतुष्पदा छन्द कह रहे हैं कि 'धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष' ये चारों ही तेरी (पद) = प्राप्य वस्तु हैं। धर्म व मोक्ष को भूलकर तू अर्थ व काम में ही न फँस जाना। ४. त्रिपदा छन्द कहते हैं कि तूने तीन कदम रखने हैं तभी तू त्रिविक्रम बनेगा। तू 'शरीर, मन व मस्तिष्क' तीनों को स्वस्थ बना। 'काम-क्रोध-लोभ' तीनों पर आक्रमण करनेवाला बन। 'सत्य, यश, श्री' तीनों को धारण कर । त्रिमात्रा ओंकार का ध्यान करके त्रिलोकी का विजय करनेवाला हो। ५. षट्पदा छन्द 'काम-क्रोध-लोभ-मोह-मद- मात्सर्य' इन छह के छह शत्रुओं पर आक्रमण की सूचना दे रहे हैं। पाँचों ज्ञानेन्द्रियों व छठे मन को काबू करने का ये उपदेश देते हैं । ६. 'विछन्द' यदि छन्दरहित-इच्छा रहित होने का उपदेश देते हैं तो 'सच्छन्द' कह रहे हैं कि तुममें वेदाधिगम व वैदिक कर्मयोग करने की इच्छा तो होनी ही चाहिए।

    भावार्थ - भावार्थ - मन्त्र के विविध छन्दों की स्वरूप - सूचनाएँ हमें शान्ति देनेवाली बनें।

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