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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 43
    ऋषिः - भारद्वाज ऋषिः देवता - वीरा देवताः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः
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    रथे॒ तिष्ठ॑न्नयति वा॒जिनः॑ पु॒रो यत्र॑यत्र का॒मय॑ते सुषार॒थिः। अ॒भीशू॑नां महि॒मानं॑ पनायत॒ मनः॑ प॒श्चादनु॑ यच्छन्ति र॒श्मयः॑॥४३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रथे॑। तिष्ठ॑न्। न॒य॒ति॒। वा॒जिनः॑। पु॒रः। यत्र॑य॒त्रेति॒ यत्र॑ऽयत्र। का॒मय॑ते। सु॒षा॒र॒थिः। सु॒सा॒र॒थिरिति॑ सुऽसार॒थिः। अ॒भीशू॑नाम्। म॒हि॒मान॑म्। प॒ना॒य॒त॒। मनः॑। प॑श्चात्। अनु॑। य॒च्छ॒न्ति॒। र॒श्मयः॑ ॥४३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रथे तिष्ठन्नयति वाजिनः पुरो यत्रयत्र कामयते सुषारथिः । अभीशूनाम्महिमानम्पनायत मनः पश्चादनु यच्छन्ति रश्मयः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    रथे। तिष्ठन्। नयति। वाजिनः। पुरः। यत्रयत्रेति यत्रऽयत्र। कामयते। सुषारथिः। सुसारथिरिति सुऽसारथिः। अभीशूनाम्। महिमानम्। पनायत। मनः। पश्चात्। अनु। यच्छन्ति। रश्मयः॥४३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 43
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    पदार्थ -
    १. (रथे) = रथ पर (तिष्ठन्) = स्थिरता से ठहरा हुआ (सुषारथिः) = उत्तम सारथि (यत्र यत्र) = जहाँजहाँ (कामयते) = चाहता है, वहाँ-वहाँ (वाजिनः) = घोड़ों को (पुर:) = आगे (नयति) = ले जाता है। यह शरीर भी रथ है। इस रथ पर आत्मा रथी है, वह बुद्धिरूप सारथिवाला है। जब यह सारथि ठीक होता है तब यह इन्द्रियरूप घोड़ों को इष्ट स्थान की ओर ले जाता है और अपनी जीवन-यात्रा को आगे और आगे ( पुरः) बढ़ाता चलता है, परन्तु सारथि के अकुशल होने पर ये घोड़े रथ को किसी गर्त में गिरा देते हैं और सब काम ही समाप्त हो जाता है, उन्नति व यात्रापूर्ति का कोई प्रश्न ही नहीं रह जाता। २. मन्त्र कहता है कि जहाँ सारथि का महत्त्वपूर्ण स्थान है, वहाँ (अभीशूनाम्) = रश्मियों की लगामों की (महिमानम्) = महिमा की (पनायत) = स्तुति करो। ये (रश्मयः) = रश्मियाँ-लगामें (पश्चात्) = पीछे होती हुई (मन:) = अश्वरूपी चित्त को (अनुयच्छन्ति) = अनुकूलता से प्राप्त होकर वशवर्ती कर लेती हैं। लगाम घोड़ों को काबू करने में सहायक होती है। शरीर में मन ही लगाम है। मनीषा, अर्थात् बुद्धि ने इस मनरूप लगाम के द्वारा ही इन्द्रियों को काबू करना है।

    भावार्थ - भावार्थ- बुद्धिरूप सारथि उत्तम होगा तो वह इन्द्रियों से हमारी जीवन-यात्रा को पूर्ण करेगा। इन इन्द्रियों को मनरूप लगाम द्वारा ही काबू किया जा सकता है। बुद्धिरूप सारथि का नाम ही मनीषा (मनसः ईष्टे) है, यह मन का शासन करती है।

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