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  • यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 6
    ऋषिः - नारायण ऋषिः देवता - परमेश्वरो देवता छन्दः - निचृदष्टिः स्वरः - मध्यमः
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    नृ॒त्ताय॑ सू॒तं गी॒ताय॑ शैलू॒षं धर्मा॑य सभाच॒रं न॒रिष्ठा॑यै भीम॒लं न॒र्माय॑ रे॒भꣳ हसा॑य॒ कारि॑मान॒न्दाय॑ स्त्रीष॒खं प्र॒मदे॑ कुमारीपु॒त्रं मे॒धायै॑ रथका॒रं धैर्य्या॑य॒ तक्षा॑णम्॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नृ॒त्ताय॑। सू॒त॒म्। गी॒ताय॑। शै॒लू॒षम्। धर्मा॑य। स॒भा॒च॒रमिति॑ सभाऽच॒रम्। न॒रिष्ठा॑यै। भी॒म॒लम्। न॒र्माय॑। रे॒भम्। हसा॑य। कारि॑म्। आ॒न॒न्दायेत्या॑न॒न्दाय॑। स्त्री॒ष॒ख॒म्। स्त्री॒स॒खमिति॑ स्त्रीऽस॒खम्। प्र॒मद॒ इति॑ प्र॒ऽमदे॑। कु॒मा॒री॑पु॒त्रमिति॑ कुमारीऽपु॒त्रम्। मे॒धायै॑। र॒थ॒का॒रमिति॑ रथऽका॒रम्। धैर्य्या॑य। तक्षा॑णम् ॥६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नृत्ताय सूतङ्गीताय शैलूषन्धर्माय सभाचरन्नरिष्ठायै भीमलन्नर्माय रेभँ हसाय कारिमानन्दाय स्त्रीषुखम्प्रमदे कुमारीपुत्रम्मेधायै रथकारन्धैर्याय तक्षाणम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नृत्ताय। सूतम्। गीताय। शैलूषम्। धर्माय। सभाचरमिति सभाऽचरम्। नरिष्ठायै। भीमलम्। नर्माय। रेभम्। हसाय। कारिम्। आनन्दायेत्यानन्दाय। स्त्रीषखम्। स्त्रीसखमिति स्त्रीऽसखम्। प्रमद इति प्रऽमदे। कुमारीपुत्रमिति कुमारीऽपुत्रम्। मेधायै। रथकारमिति रथऽकारम्। धैर्य्याय। तक्षाणम्॥६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 30; मन्त्र » 6
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    पदार्थ -
    ११. (नृत्ताय सूतम्) = नृत्य के लिए-इशारों से नृत्य की प्रेरणा देनेवाले को प्राप्त करे। १२. (गीताय शैलूषम्) = सम्मिलित गायन के लिए शैलूष [One who beats tune at a concert ] को - करताल बजानेवाले को रक्खो । १३. (धर्माय) = राष्ट्र के कानून के लिए (सभाचरम्) = धर्मसभा के सभासद् [Assembly's member] को प्राप्त करो। १४. (नरिष्ठायै भीमलम्) = [नरि-ष्ठा] नेतृत्व के पद पर स्थिति के लिए भीतिप्रद, ओजस्वी, रोबवाले पुरुष को नियत करे। १५. (नर्माय रेभम्) = परिहास आदि की क्रीड़ा के लिए स्तोता को अथवा बोलने में चतुर वाचाट पुरुष को प्राप्त करे। १६. (हसाय कारिम्) = हँसी-मखौल के लिए नकल उतारनेवाले को प्राप्त करे। १७. (आनन्दाय) = आनन्द प्राप्ति के लिए (स्त्रीषखम्) = पत्नी की मित्रता को प्राप्त करे। वस्तुतः सारा गृहसुख पत्नी के साथ समान विचारवाला होने में ही है। १८. (प्रमदे कुमारीपुत्रम्) = कुमारी के पुत्र को प्रमादयुक्त कार्यों के लिए जाने। जिस प्रकार कुमारी से प्रमादवश वह सन्तान हो गई, अतः उस सन्तान में भी वही प्रमाददोष उत्पन्न हो जाएगा। ऐसा सन्तान प्रायः प्रमादयुक्त कार्यों को करनेवाला होगा । १९. (मेधायै रथकारम्) = मेधा के लिए रथकार को प्राप्त करे। जैसे एक रथकार भिन्न-भिन्न रथांगों को कुशलता से संगत करके रथ का निर्माण करता है उसी प्रकार उसका अनुसरण करता हुआ पुरुष अपनी मेधा को बढ़ानेवाला होता है। रथ आदि के निर्माण में बुद्धिकौशल व्यक्त होता है । २०. (धैर्याय) = धैर्य के लिए (तक्षाणम्) = तरखान को प्राप्त करे । 'किस प्रकार सूक्ष्म से सूक्ष्म चित्रकारी व कारीगरी के कार्यों को यह तक्षा धैर्यपूर्वक करता चलता है', इस कर्म को देखकर दूसरा मनुष्य भी धैर्य से काम करने का पाठ पढ़ता है। मुझे एक बढ़ई की भाँति धैर्यवाला [As patient as a carpenter] बनना है' ऐसा हमें निश्चय करना चाहिए।

    भावार्थ - भावार्थ - राजा राष्ट्र में नृत्य आदि कार्यों के लिए सूत आदि को नियुक्त करे।

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