यजुर्वेद - अध्याय 38/ मन्त्र 12
ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः
देवता - अश्विनौ देवते
छन्दः - आर्ची पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
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अश्वि॑ना घ॒र्मं पा॑त॒ꣳ हार्द्वा॑न॒मह॑र्दि॒वाभि॑रू॒तिभिः॑।त॒न्त्रा॒यिणे॒ नमो॒ द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॑म्॥१२॥
स्वर सहित पद पाठअश्वि॑ना। घ॒र्मम्। पा॒त॒म्। हार्द्वा॑नम्। अहः॑। दि॒वाभिः॑। ऊ॒तिभि॒रित्यू॒तिऽभिः॑ ॥ त॒न्त्रा॒यिणे॑। नमः॑। द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॑म् ॥१२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अश्विना घर्मम्पातँ हार्द्वानमहर्दिवाभिरूतिभिः । तन्त्रायिणो नमो द्यावापृथिवीभ्याम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
अश्विना। घर्मम्। पातम्। हार्द्वानम्। अहः। दिवाभिः। ऊतिभिरित्यूतिऽभिः॥ तन्त्रायिणे। नमः। द्यावापृथिवीभ्याम्॥१२॥
विषय - सोमपान
पदार्थ -
१. हे (अश्विना) = कर्मों में शीघ्रता से व्यापनेवाले पति-पत्नियो । (अहर्दिवाभिः ऊतिभिः) = दिन-रात के रक्षणों से इस (हार्द्धानम्) = [हृदं वनति = Which wins the heart] हृदय को जीतनेवाले - हृदयगति को कभी बन्द [ Heart failure ] न होने देनेवाले (घर्मम्) = सोमरस को - शरीर में उष्णता को रखनेवाली शक्ति को (पातम्) = सुरक्षित करो। यहाँ तीन बातें ध्यान देन योग्य हैं - [क] शरीर में वीर्यरक्षा के लिए। इस अर्थ में दिन-रात सावधानी की आवश्यकता है। वह सावधानी यह है कि सदा उत्तम कर्मों में व्यापृत रहें। [ख] इस सोमपान से शरीर में गर्मी शक्ति बनी रहती है [ग] सोमपान करनेवाले का हृदय ठीक काम करता है, कभी फेल नहीं होता। यह सोमपायी औरों के हृदयों को जीत पाता है अर्थात् औरों को अपनी ओर आकृष्ट करनेवाला बनता है। २. (तन्त्रायिणे) = [ एष वै तन्त्रायी य एष तपत्येष हीमाँल्लोकान्तन्त्रमिवानुसंचरति -श० १४।२।२।२२] संसार - तन्त्र में विचरनेवाले सूर्य के लिए तथा (द्यावापृथिवीभ्याम्) = द्यावापृथिवी के लिए (नमः) = नमस्कार हो। मैं इनके प्रति सन्नत होऊँ। मेरा पृथिवीरूप शरीर पूर्ण स्वस्थ हो, मस्तिष्करूप द्युलोक अन्धकार के आवरण से रहित हो तथा उस मस्तिष्करूप द्युलोक में ज्ञान के सूर्य का उदय हो । एवं, यह स्पष्ट है कि उस घर्मपान का ही यह परिणाम है कि [क] शरीर स्वस्थ बनता है [ख] मस्तिष्क ज्ञानग्रहण के लिए उपयुक्ततम बनता है [ग] हमारे जीवन में ज्ञान के सूर्य का उदय होता है।
भावार्थ - भावार्थ- हम सदा सावधानी से कर्मों में लगे रहकर सोम का पान करें। यह हमें हृदयों का विजेता, स्वस्थ और बुद्धि व विद्या से सम्पन्न बनाएगा।
- सूचना-धर्म का अर्थ 'यज्ञ' भी है। यज्ञ की रक्षा से भी द्युलोक, पृथिवीलोक व सूर्य आदि सब देव अनुकूल होते हैं।
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