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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 11
    ऋषिः - बृहस्पतिर्ऋषिः देवता - इन्द्राबृहस्पती देवते छन्दः - जगती, स्वरः - निषादः
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    बृह॑स्पते॒ वाजं॑ जय॒ बृह॒स्पत॑ये॒ वाचं॑ वदत॒ बृह॒स्पतिं॒ वाजं॑ जापयत। इन्द्र॒ वाजं॑ ज॒येन्द्रा॑य॒ वाचं॑ वद॒तेन्द्रं॒ वाजं॑ जापयत॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृह॑स्पते। वाज॑म्। ज॒य॒। बृह॒स्पत॑ये। वाच॑म्। व॒द॒त॒। बृह॒स्पति॑म्। वाज॑म्। जा॒प॒य॒त॒। इन्द्र॑। वाज॑म्। ज॒य॒। इन्द्रा॑य। वाच॑म्। व॒द॒त॒। इन्द्र॑म्। वाज॑म्। जा॒प॒य॒त॒ ॥११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहस्पते वाजं जय बृहस्पतये वाचं वदत बृहस्पतिं वाजं जापयत । इन्द्र वाजं जयेन्द्राय वाचं वदतेन्द्रं वाजं जापयत ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    बृहस्पते। वाजम्। जय। बृहस्पतये। वाचम्। वदत। बृहस्पतिम्। वाजम्। जापयत। इन्द्र। वाजम्। जय। इन्द्राय। वाचम्। वदत। इन्द्रम्। वाजम्। जापयत॥११॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 11
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    पदार्थ -

    १. गत मन्त्र के अनुसार राष्ट्र की उत्तमता इस बात पर निर्भर है कि प्रत्येक व्यक्ति ज्ञानी व जितेन्द्रिय बनने का प्रयत्न करे। विशेषतः राजा व सेनापति—जो राष्ट्र के मुख्य अधिकारी हैं, उन्हें तो ज्ञानी व जितेन्द्रिय बनना ही चाहिए। ये जितेन्द्रिय होंगे तभी शत्रुओं पर विजय पा सकेंगे। 

    २. ( बृहस्पते ) = हे ज्ञान के अधिपति राजन्! ( वाजं जय ) = तू संग्राम को जीतनेवाला बन। 

    ३. इन उल्लिखित शब्दों में राजा को विजय की प्रेरणा देकर पुरोहित उपस्थित सब सभ्यों से भी कहता है कि ( बृहस्पतये ) = इस ज्ञान के स्वामी राजा के लिए तुम सब भी ( वाचं वदत ) = उत्साह की वाणी को कहो। ‘अवश्य जीतना है’ इस प्रकार राजा को उत्साहित करो। ( बृहस्पतिम् ) = इस ज्ञानी राजा को ( वाजं जापयत ) = संग्राम में विजय दिलाओ। वस्तुतः राष्ट्र के सभी व्यक्ति राजा की पीठ पर हों तभी विजय सम्भव है। 

    ४. अब पुरोहित सेनापति को सम्बोधित करते हुए कहता है कि ( इन्द्र ) = हे शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले! तू ( वाजम् ) = संग्राम को ( जय ) = जीत। हे प्रजाओ! तुम भी ( इन्द्राय ) = इस सेनापति के लिए ( वाचं वदत ) = उत्साह की वाणी बोलो। ( इन्द्रं वाजं जापयत ) = इस प्रकार उत्साह की वाणी को बोलते हुए तुम इस इन्द्र को अवश्य युद्ध में विजय दिलाओ।

    भावार्थ -

    भावार्थ — १. राजा को ज्ञानी बनना है, सेनापति को पूर्ण जितेन्द्रिय बनकर शत्रुओं को जीतना है। २. प्रजा ने राजा व सेनापति को उत्साहित करना है। ३. वस्तुतः विजय प्रजा को ही दिलानी होती है। प्रजा साथ है तो विजय है, प्रजा साथ न दे तो विजय का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता।

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