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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1053
ऋषिः - हिरण्यस्तूप आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
7
अ꣣꣬भ्य꣢꣯र्ष स्वायुध꣣ सो꣡म꣢ द्वि꣣ब꣡र्ह꣢सꣳ र꣣यि꣢म् । अ꣡था꣢ नो꣣ व꣡स्य꣢सस्कृधि ॥१०५३॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣भि꣢ । अ꣣र्ष । स्वायुध । सु । आयुध । सो꣡म꣢꣯ । द्वि꣣ब꣡र्ह꣢सम् । द्वि꣣ । ब꣡र्ह꣢꣯सम् । र꣣यि꣢म् । अ꣡थ꣢꣯ । नः꣣ । व꣡स्य꣢꣯सः । कृ꣣धि ॥१०५३॥
स्वर रहित मन्त्र
अभ्यर्ष स्वायुध सोम द्विबर्हसꣳ रयिम् । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥१०५३॥
स्वर रहित पद पाठ
अभि । अर्ष । स्वायुध । सु । आयुध । सोम । द्विबर्हसम् । द्वि । बर्हसम् । रयिम् । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥१०५३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1053
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
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विषय - 'द्विबर्हस् रयि' =ब्रह्म+क्षत्र
पदार्थ -
हमारे मनों पर वासनाओं का आक्रमण होता है, परन्तु यदि हम मन में प्रभु का स्मरण करते हैं तो इन वासनाओं का आक्रमण नहीं हो पाता । वे प्रभु 'स्वायुध' हैं - हमारे उत्तम आयुध हैं । प्रभु के द्वारा हम इन कामादि शत्रुओं को पराजित कर पाते हैं । हे (स्वायुध) = हमारे उत्तम आयुधरूप (सोम) = परमात्मन् ! आप हमें (द्विबर्हसम्) = द्युलोक व पृथिवीलोक में-मस्तिष्क व शरीर में (रयिम्) = सम्पत्ति को (अभ्यर्ष) = प्राप्त कराइए । आपकी कृपा से हमें मस्तिष्क की सम्पत्ति 'ज्ञान' तथा शरीर की सम्पत्ति 'बल' दोनों ही प्राप्त हों । हमें 'ब्रह्म व क्षत्र' दोनों ही प्राप्त हों और इस प्रकार हे प्रभो ! (अथ नः वस्यसः कृधि) = आप हमारे जीवनों को उत्कृष्ट बनाइए।
भावार्थ -
हम प्रभु को अपना आयुध बनाएँ – शत्रुओं का विनाश करें और अपने 'ब्रह्म' व क्षत्र' का विकास करें ।
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