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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1122
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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प꣡रि꣢ स्वा꣣ना꣢स꣣ इ꣡न्द꣢वो꣣ म꣡दा꣢य ब꣣र्ह꣡णा꣢ गि꣣रा꣢ । म꣡धो꣢ अर्षन्ति꣣ धा꣡र꣢या ॥११२२॥

स्वर सहित पद पाठ

प꣡रि꣢꣯ । स्वा꣣ना꣡सः꣢ । इ꣡न्द꣢꣯वः । म꣡दा꣢꣯य । ब꣣र्ह꣡णा꣢ । गि꣣रा꣢ । म꣡धोः꣢꣯ अ꣣र्षन्ति । धा꣡र꣢꣯या ॥११२२॥


स्वर रहित मन्त्र

परि स्वानास इन्दवो मदाय बर्हणा गिरा । मधो अर्षन्ति धारया ॥११२२॥


स्वर रहित पद पाठ

परि । स्वानासः । इन्दवः । मदाय । बर्हणा । गिरा । मधोः अर्षन्ति । धारया ॥११२२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1122
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
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पदार्थ -

(स्वानास:) = प्रभु के गुणों का उच्चारण करनेवाले (इन्दवः) = शक्तिशाली अथवा ज्ञानैश्वर्य से परिपूर्ण विद्वान् लोग (मदाय) = आनन्द की वृद्धि के लिए (बर्हणा गिरा) = वृद्धि की कारणभूत इस वेदवाणी के साथ (मधोः धारया) = शहद की वाणी से, अर्थात् अत्यन्त मधुरवाणी से (परि अर्षन्ति सर्वत्र) = चारों ओर गति करते हैं ।

१. परिव्राट् लोग प्रभु के गुणों का उच्चारण करते हैं, २. उनके पास ज्ञान का महान् ऐश्वर्य होता है, ३. इस ज्ञान के प्रचार में वे हर्ष का अनुभव करते हैं, ४. वृद्धि के कारणभूत ज्ञान को फैलाते हैं, ५. उनकी वाणी शहद से भी मीठी होती है ।

भावार्थ -

 हम भक्त व ज्ञानी बनकर मधुरवाणी से ज्ञान का प्रचार करें ।

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