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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1164
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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य꣡ आ꣢र्जी꣣के꣢षु꣣ कृ꣡त्व꣢सु꣣ ये꣡ मध्ये꣢꣯ प꣣꣬स्त्या꣢꣯नाम् । ये꣢ वा꣣ ज꣡ने꣢षु प꣣ञ्च꣡सु꣢ ॥११६४॥

स्वर सहित पद पाठ

ये । आ꣣जीर्के꣡षु꣢ । कृ꣡त्व꣢꣯सु । ये । म꣡ध्ये꣢꣯ । प꣣꣬स्त्या꣢नाम् । ये । वा꣣ । ज꣡ने꣢꣯षु । प꣣ञ्च꣡सु꣢ ॥११६४॥


स्वर रहित मन्त्र

य आर्जीकेषु कृत्वसु ये मध्ये पस्त्यानाम् । ये वा जनेषु पञ्चसु ॥११६४॥


स्वर रहित पद पाठ

ये । आजीर्केषु । कृत्वसु । ये । मध्ये । पस्त्यानाम् । ये । वा । जनेषु । पञ्चसु ॥११६४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1164
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

(ये) = जो सोम १. (आर्जीकेषु) = सरल व्यक्तियों में निवास करते हैं, अर्थात् कुटिल जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन कठिन होता है । २. (कृत्वसु) = जो सोम कर्म करनेवालों में रहते हैं, अर्थात् कर्मशील व्यक्ति वासनाओं से बचे रहने के कारण सोम की रक्षा कर पाता है। ३. (ये) = जो सोम (पस्त्यानां मध्ये) = घरों के मध्य में निवास करते हैं, अर्थात् सोम में सुरक्षित रहते हैं। जो व्यक्ति पतिव्रत व पत्नीव्रत को निभाते हुए घरों में ही निवास करते हैं - वासनाओं की पूर्ति के लिए इधर-उधर भटकते नहींअपने जीवनों को क्लब का जीवन नहीं बनाते । ४. (वा) = अथवा (ये) = जो सोम (पञ्चषु) = [पचि विस्तारे] अपना विस्तार व विकास करनेवाले मनुष्यों में रहते हैं । जब मनुष्य का लक्ष्य विकास हो जाता है तब उसके लिए सोम-रक्षा सुगम हो जाती है ।

भावार्थ -

१. सरलता, २. क्रियाशीलता, ३. गृहजीवन व ४. जीवन विकास – ये सोम-रक्षा के साधन हैं।

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