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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1520
ऋषिः - शतं वैखानसाः
देवता - अग्निः पवमानः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
अ꣢ग्ने꣣ प꣡व꣢स्व꣣ स्व꣡पा꣢ अ꣣स्मे꣡ वर्चः꣢꣯ सु꣣वी꣡र्य꣢म् । द꣡ध꣢द्र꣣यिं꣢꣫ मयि꣣ पो꣡ष꣢म् ॥१५२०॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡ग्ने꣢꣯ । प꣡व꣢꣯स्व । स्व꣡पाः꣢꣯ । सु꣣ । अ꣡पाः꣢ । अ꣣स्मे꣡इति꣢ । व꣡र्चः꣢꣯ । सु꣣वी꣡र्य꣢म् । सु꣣ । वी꣡र्य꣢꣯म् । द꣡ध꣢꣯त् । र꣣यि꣢म् । म꣡यि꣢꣯ । पो꣡ष꣢꣯म् ॥१५२०॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने पवस्व स्वपा अस्मे वर्चः सुवीर्यम् । दधद्रयिं मयि पोषम् ॥१५२०॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्ने । पवस्व । स्वपाः । सु । अपाः । अस्मेइति । वर्चः । सुवीर्यम् । सु । वीर्यम् । दधत् । रयिम् । मयि । पोषम् ॥१५२०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1520
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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विषय - प्रकाश व कर्मशीलता
पदार्थ -
हे (अग्ने) = प्रकाशस्वरूप! (स्वपाः) = उत्तम कर्मोंवाले प्रभो! १. (पवस्व) = हमारे जीवनों को पवित्र कीजिए। २. (अस्मे) = हमारे लिए (सुवीर्यम्) = उत्तम वीर्यवाली (वर्च:) = तेजस्विता को प्राप्त कराइए तथा ३. (मयि) = मुझमें (पोषं रयिम्) = पोषक धन को (दधत्) = धारण कीजिए ।
प्रभु को यहाँ ‘प्रकाशस्वरूप' तथा ‘क्रियाशील' के रूप में स्मरण किया है। प्रकाश व ज्ञान हमारे कर्मों को पवित्र करता है, ज्ञान के समान पवित्र करनेवाली वस्तु है ही नहीं । इसी प्रकार क्रियाशीलता जहाँ हमें वासनाओं के आक्रमण से बचाती है, वहाँ हमें शक्तिशाली भी बनाती है । इन उत्तम कर्मों के द्वारा हम पोषण के लिए पर्याप्त धन भी प्राप्त करते हैं। उत्तम कर्मों से कमाया हुआ यह धन हमारे पतन का कारण नहीं बनता ।
भावार्थ -
'हमारा जीवन पवित्र हो, उत्तम वीर्य से हम तेजस्वी बनें, हमें पोषक धन प्राप्त हो' इन सब बातों के लिए हमारा जीवन प्रकाश व कर्मशीलता के तत्त्वों को अपनाये।
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