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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1562
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - अग्निः
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम -
4
स꣡ इ꣢धा꣣नो꣡ वसु꣢꣯ष्क꣣वि꣢र꣣ग्नि꣢री꣣डे꣡न्यो꣢ गि꣣रा꣢ । रे꣣व꣢द꣣स्म꣡भ्यं꣢ पुर्वणीक दीदिहि ॥१५६२॥
स्वर सहित पद पाठसः । इ꣣धा꣢नः । व꣡सुः꣢꣯ । क꣣विः꣢ । अ꣣ग्निः꣢ । ई꣣डेन्यः꣢ । गि꣣रा꣢ । रे꣣व꣢त् । अ꣣स्म꣡भ्य꣢म् । पु꣢र्वणीक । पुरु । अनीक । दीदिहि ॥१५६२॥
स्वर रहित मन्त्र
स इधानो वसुष्कविरग्निरीडेन्यो गिरा । रेवदस्मभ्यं पुर्वणीक दीदिहि ॥१५६२॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । इधानः । वसुः । कविः । अग्निः । ईडेन्यः । गिरा । रेवत् । अस्मभ्यम् । पुर्वणीक । पुरु । अनीक । दीदिहि ॥१५६२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1562
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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विषय - तेजस्विता व दिव्य गुण
पदार्थ -
हे प्रभो ! जो आप १. (इधान:) = [इन्ध दीप्ति, ताच्छील्य में चानश् प्रत्यय] स्वाभाविक दीप्तिवाले हैं—आपका ज्ञान स्वाभाविक है । २. (वसुः) = सर्वत्र निवास करनेवाले तथा सभी को निवास देनेवाले हैं। ३. (कविः) = [कौति सर्वा विद्याः] सब विद्याओं का उपदेश देनेवाले हैं । ४. (अग्निः) = अग्रेणी - सबको आगे ले-चलनेवाले हैं। ५. (गिरा इडेन्यः) = वेदवाणी के द्वारा स्तवन के योग्य हैं। (सः) = वे आप पुर्वणीक[पुरु, अनीक=तेजस्] अत्यन्त तेजस्वी हैं । (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (रेवत्) = [यद् बृहत्तद् रैवतम्ऐ० ४.१३, रेवत्यः सर्वा देवताः – ऐ० २.१६] विशालता को तथा सब दिव्य गुणों को (दीदिहि) = दीजिए– प्राप्त कराइए ।
प्रभु से सब दिव्य गुणों की प्राप्ति की प्रार्थना के समय प्रभु को ‘पुर्वणीक'=‘अत्यन्त तेजस्वी' इस शब्द से स्मरण करना एक विशेष महत्त्व रखता है। तेजस्विता के साथ ही दिव्य गुणों का निवास है। इन दिव्य गुणों की प्राप्ति के लिए 'उत्तम दीप्तिवाला बनना, उत्तम निवासवाला होना, क्रान्तदर्शी बनना, आगे चलना तथा वेदवाणी द्वारा प्रभु-स्तवन करना' भी आवश्यक है। वाणी से सदा प्रभु-स्तवन करता हुआ यह प्रशस्तेन्द्रिय बनता है और गोतम= [उत्तम इन्द्रियोंवाला] इस यथार्थ नामवाला होता है।
भावार्थ -
हम तेजस्वी बनें, जिससे दिव्य गुणों के पात्र बन सकें ।
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