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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1756
ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - उषाः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः काण्ड नाम -
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उ꣡द꣢पप्तन्नरु꣣णा꣢ भा꣣न꣢वो꣣ वृ꣡था꣢ स्वा꣣यु꣡जो꣢ अ꣡रु꣢षी꣣र्गा꣡ अ꣢युक्षत । अ꣡क्र꣢न्नु꣣षा꣡सो꣢ व꣣यु꣡ना꣢नि पू꣣र्व꣢था꣣ रु꣡श꣢न्तं भा꣣नु꣡मरु꣢꣯षीरशिश्रयुः ॥१७५६॥

स्वर सहित पद पाठ

उ꣢त् । अ꣣पप्तन् । अरुणाः꣢ । भा꣣न꣡वः꣢ । वृ꣡था꣢꣯ । स्वा꣣यु꣡जः꣢ । सु꣣ । आयु꣡जः꣢ । अ꣡रु꣢꣯षीः । गाः । अयु꣣क्षत । अ꣡क्र꣢꣯न् । उ꣣षा꣡सः꣢ । व꣣यु꣡ना꣢नि । पू꣣र्व꣡था꣢ । रु꣡श꣢꣯न्तम् । भा꣣नु꣢म् । अ꣡रु꣢꣯षीः । अ꣣शिश्रयुः ॥१७५६॥


स्वर रहित मन्त्र

उदपप्तन्नरुणा भानवो वृथा स्वायुजो अरुषीर्गा अयुक्षत । अक्रन्नुषासो वयुनानि पूर्वथा रुशन्तं भानुमरुषीरशिश्रयुः ॥१७५६॥


स्वर रहित पद पाठ

उत् । अपप्तन् । अरुणाः । भानवः । वृथा । स्वायुजः । सु । आयुजः । अरुषीः । गाः । अयुक्षत । अक्रन् । उषासः । वयुनानि । पूर्वथा । रुशन्तम् । भानुम् । अरुषीः । अशिश्रयुः ॥१७५६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1756
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

स्वाभाविक- -(अरुणाः भानवः)= रजोगुण की लालवर्ण की किरणें (वृथा) = अनायास ही (उदपप्तन्) = हममें उदय हो जाती हैं । सत्त्वगुण की श्वेत किरणों की उत्पत्ति परिश्रम साध्य है— रजोगुण की किरणें तो अपने आप ही उत्पन्न हो जाती हैं ।

प्रभु के साथ मेल – परन्तु यही राजस् वृत्तियाँ (अरुषी:) = जब क्रोधशून्य होती हैं तब (स्वायुज:) = [स्व आ युज्] मनुष्य को आत्मतत्त्व से जोड़नेवाली होती हैं। ये (गाः) = इन्द्रियों को (अयुक्षत) = आत्मतत्त्व के चिन्तन में लगाती हैं । रजोगुण ही सत्त्व की ओर झुककर शुभकार्यों में भी हमें प्रवृत्त करता है। 

ज्ञानोत्पादन–यह (उषासः) = राजस् वृत्तियाँ (पूर्वथा) = पहले की भाँति (वयुनानि अक्रन्) = ज्ञान को करती हैं। रजोगुण के बिना ज्ञान की उत्पत्ति सम्भव ही नहीं ।

प्रभु-प्राप्ति-इस प्रकार यह (रजस् अरुषीः) = यदि क्रोधशून्य बना रहे, अर्थात् उसमें सत्त्व का उचित सम्पुट उसे अत्यन्त क्षुब्ध न होने दे तो मनुष्य (रुशन्तं भानुम्) = देदीप्यमान ज्योति को, अर्थात् परमात्मा का (अशिश्रयुः) = सेवन करता है ।

भावार्थ -

रजस् स्वाभाविक है, परन्तु हमें उसे सत्त्व के सम्पर्क से 'प्रभु की ओर ध्यानवाला और ज्ञानोत्पादन द्वारा प्रभु को प्राप्त करानेवाला' बनाना है।

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