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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 3
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
4
अ꣣ग्निं꣢ दू꣣तं꣡ वृ꣢णीमहे꣣ हो꣡ता꣢रं वि꣣श्व꣡वे꣢दसम् । अ꣣स्य꣢ य꣣ज्ञ꣡स्य꣢ सु꣣क्र꣡तु꣢म् ॥३॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣ग्नि꣢म् । दू꣣त꣢म् । वृ꣣णीमहे । हो꣡ता꣢꣯रम् । वि꣣श्व꣡वे꣢दसम् । वि꣣श्व꣢ । वे꣣दसम् । अस्य꣢ । य꣣ज्ञ꣡स्य꣢ । सु꣣क्र꣡तु꣢म् । सु꣣ । क्र꣡तु꣢꣯म् ॥३॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निं दूतं वृणीमहे होतारं विश्ववेदसम् । अस्य यज्ञस्य सुक्रतुम् ॥३॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्निम् । दूतम् । वृणीमहे । होतारम् । विश्ववेदसम् । विश्व । वेदसम् । अस्य । यज्ञस्य । सुक्रतुम् । सु । क्रतुम् ॥३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 3
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1;
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विषय - तपस्या की अग्नि में भक्त
पदार्थ -
१. हम तो (अग्निम्) =उस अग्र-स्थान के प्रापक प्रभु को (वृणीमहे) वरते हैं। जीव के सामने यह चुनाव है कि 'प्रकृति को वर ले या प्रभु को ।' प्रकृति 'प्रेय-मार्ग' का प्रतीक है, प्रभु ‘श्रेय-मार्ग' का । मन्दमति प्रेय-मार्ग का ही वरण करता है, उसकी हरियावल उसे मनोहर प्रतीत होती है, उसकी मधुरता से वह छला जाता है, परन्तु वह प्रभु तो (दूतम्) - उपतापक हैं [दु उपतापे], अपने भक्तों को तपस्या की अग्नि में तपाकर 'काञ्चन'- सोना बनाना चाहते हैं, (होतारम्)=परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर सब सम्पत्तियों के देनेवाले वही हैं [हु दाने], (विश्ववेदसम्)=वही सब सम्पत्तियों के ईश हैं। प्रकृति भी तो प्रभु की ही है। प्रभु के मिलने पर प्रकृति तो मिल ही जाती है।
२. प्रभु का वरण ही ठीक है, वे प्रभु (अस्य)- इस भक्त के (यज्ञस्य) = जीवनयज्ञ के (सुक्रतुम्)=उत्तम कर्त्ता होते हैं। हमारी जीवन-यात्रा को वे ठीक-ठाक ले-चलते हैं। हम अपने शरीर-रथ का चालक उस प्रभु को ही बनाएँ।
यदि हम प्रकृति के विलासों की ओर न जाकर प्रभु की प्रेरणा के अनुसार जीवन-यापन करेंगे तो इस बुद्धि-मार्ग को अपनाने के कारण इस मन्त्र के ऋषि ‘मेधातिथि' बनेंगे।
भावार्थ -
भावार्थ-वे प्रभु तपस्या से परिपक्व हुए भक्त को सब इष्ट- सुख प्राप्त कराते हैं, और उसकी जीवन-यात्रा को सुन्दर प्रकार से पूर्ण करते हैं।
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