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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 365
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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स꣢ घा꣣ य꣡स्ते꣢ दि꣣वो꣡ नरो꣢꣯ धि꣣या꣡ मर्त꣢꣯स्य꣣ श꣡म꣢तः । ऊ꣣ती꣡ स बृ꣢꣯ह꣣तो꣢ दि꣣वो꣢ द्वि꣣षो꣢꣫ अꣳहो꣣ न꣡ त꣢रति ॥३६५॥

स्वर सहित पद पाठ

सः꣢ । घ꣣ । यः꣢ । ते꣣ । दिवः꣢ । न꣡रः꣢꣯ । धि꣣या꣢ । म꣡र्त꣢꣯स्य । श꣡म꣢꣯तः । ऊ꣣ती꣢ । सः । बृ꣣हतः꣢ । दि꣣वः꣢ । द्वि꣣षः꣢ । अँ꣡हः꣢꣯ । न । त꣣रति ॥३६५॥


स्वर रहित मन्त्र

स घा यस्ते दिवो नरो धिया मर्तस्य शमतः । ऊती स बृहतो दिवो द्विषो अꣳहो न तरति ॥३६५॥


स्वर रहित पद पाठ

सः । घ । यः । ते । दिवः । नरः । धिया । मर्तस्य । शमतः । ऊती । सः । बृहतः । दिवः । द्विषः । अँहः । न । तरति ॥३६५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 365
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 2;
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पदार्थ -

(सः) = वह (नरः) = मनुष्य (यः) = जो द्(विषः) = द्वेष की भावनाओं से [द्वेषणं द्विट्] (अंहो न) = पापों की भाँति अर्थात् बड़ा पाप समझता हुआ तरति - तैर जाता है, (घा) = निश्चय से (दिवः ते) = ज्ञानस्वरूप
आपका है। ‘हम प्रभु से अपने समीप पुकारे जाएँ', यह तभी होगा जब हम द्वेष की भावनाओं से ऊपर उठेंगे। यह द्वेष की भावना से ऊपर उठनेवाला व्यक्ति ही (नरः) = नर है, अपने को आगे प्राप्त करानेवाला है। द्वेष त्यागे बिना आगे बढ़ना सम्भव नहीं है। यह नर (धिया) = बुद्धि से-समझदारी से हमेशा द्वेषों से दूर रहने का प्रयत्न करता है। यह समझदारी से चलनेवाला मनुष्य इसलिए द्वेषों से ऊपर उठता है क्योंकि -

१. (मर्त्तस्य शमतः) = इस मर्त्त को - मरणधर्मा मनुष्य को भी कुछ शान्ति प्राप्त हो सके। शम-त:=शम के दृष्टिकोण से । द्वेष से दूर नहीं होगा तो उन भावनाओं में सदा झुलसता रहेगा। द्वेष से ऊपर उठा और शान्ति का अनुभव हुआ।

२. (ऊती) = यह समझदारी से चलनेवाला मनुष्य इसलिए भी द्वेष से ऊपर उठता है कि इससे ऊपर उठकर ही वह अपने शरीर की रक्षा कर पाएगा। जैसे ईंजन बहुत गर्म होकर फट पड़ता है, उसी प्रकार द्वेषाग्नि में मनुष्य का शरीररूप रथ भी जल जाता है। 'उस समय मनुष्य का रक्तचाप बढ़ जाना, स्नायु संस्थान का विकृत हो जाना' आदि कितने ही रोगों से पीड़ित हो जाता है ।

३. (सः) = वह (बृहतः) = वृद्धि के कारणभूत (दिव:) = प्रकाश के दृष्टिकोण से द्वेषों से ऊपर उठता है। द्वेष की भावनाएँ मनुष्य के मस्तिष्क को चकराये रखती हैं। यह द्वेष में डूबा हुआ मनुष्य कभी स्वस्थविचारवाला नहीं होता।

भावार्थ -

द्वेष से ऊपर उठने से हम [क] परमेश्वर के प्रिय बनेंगे, [ख] हमारे मन शान्त होंगे [ग] हमारे शरीर स्वस्थ होंगे, [घ] और हमारा मस्तिष्क सदा सुलझा हुआ होगा।

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