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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 505
ऋषिः - कश्यपो मारीचः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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इ꣣षे꣡ प꣢वस्व꣣ धा꣡र꣢या मृ꣣ज्य꣡मा꣢नो मनी꣣षि꣡भिः꣢ । इ꣡न्दो꣢ रु꣣चा꣡भि गा इ꣢꣯हि ॥५०५॥
स्वर सहित पद पाठइ꣣षे꣢ । प꣣वस्व । धा꣡र꣢꣯या । मृ꣣ज्य꣡मा꣢नः । म꣣नीषि꣡भिः꣢ । इ꣡न्दो꣢꣯ । रु꣣चा꣢ । अ꣣भि꣢ । गाः । इ꣣हि ॥५०५॥
स्वर रहित मन्त्र
इषे पवस्व धारया मृज्यमानो मनीषिभिः । इन्दो रुचाभि गा इहि ॥५०५॥
स्वर रहित पद पाठ
इषे । पवस्व । धारया । मृज्यमानः । मनीषिभिः । इन्दो । रुचा । अभि । गाः । इहि ॥५०५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 505
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4;
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विषय - प्रभु-प्रेरणा-श्रवण
पदार्थ -
यह सोम मेरे जीवन में (इषे) = प्रभु की प्रेरणा के लिए (पवस्व) = पवित्रता करे। सोम के धारण से वासनाओं का नाश होकर मेरा जीवन इस प्रकार पवित्र हो कि मुझे हृदयस्थ प्रभु की प्रेरणा सुनाई पड़े। यह सोम (मनीषिभिः) = मन को बुद्धि के द्वारा नियन्त्रित करनेवाले समझदार लोगों से (धारया) = धारण के उद्देश्य से (मृज्यमानः) = शुद्ध किया जाता है। मनीषी बनना–मन को बुद्धिपूर्ण रखना- सोम संयम का सर्वोत्तम साधन है। धारित होकर यह हमारा धारण करता है। (धारया) = धारण के हेतु से ही तो विद्वानों ने इसका संयम किया।
(इन्दो) = मुझे शक्तिशाली बनानेवाले सोम! तू (रुचा) = दीप्त के हेतु से (गा अभि इहि) = वेदवाणी की ओर चल। वेदवाणी 'ब्रह्म' है- इसकी ओर चलना 'ब्रह्मचर्य' है। वेदवाणी का अध्ययन मुझे सोम के संयम में भी सहायक होता है। इसी संयम से मैं प्रभु - प्रेरण को भी सुननेवाला बनता हूँ।
भावार्थ -
यह सोम मुझे पवित्र कर प्रभु - प्रेरणा को सुनने के योग्य बनाता है।
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