Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 653
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
8
स꣡ नः꣢ पवस्व꣣ शं꣢꣫ गवे꣣ शं꣡ जना꣢꣯य꣣ श꣡मर्व꣢꣯ते । श꣡ꣳ रा꣢ज꣣न्नो꣡ष꣢धीभ्यः ॥६५३॥
स्वर सहित पद पाठसः꣢ । नः꣣ । पवस्व । श꣢म् । ग꣡वे꣢꣯ । शम् । ज꣡नाय꣢꣯ । शम् । अ꣡र्वते꣢꣯ । शम् । रा꣣जन् । ओ꣡ष꣢꣯धीभ्यः । ओ꣡ष꣢꣯ । धी꣣भ्यः ॥६५३॥
स्वर रहित मन्त्र
स नः पवस्व शं गवे शं जनाय शमर्वते । शꣳ राजन्नोषधीभ्यः ॥६५३॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । नः । पवस्व । शम् । गवे । शम् । जनाय । शम् । अर्वते । शम् । राजन् । ओषधीभ्यः । ओष । धीभ्यः ॥६५३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 653
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
Acknowledgment
विषय - पयस् के लिए गौ
पदार्थ -
(पवित्रता)—गत मन्त्र में अथर्वन् लोगों के सात्त्विक भोजन का संकेत हुआ है। उसी प्रसंग में प्रभु से इस मन्त्र में प्रार्थना है कि (सः) = वे आप (नः) = हमें (पवस्व) = पवित्र कीजिए । पवित्रता के लिए ‘सात्त्विक भोजन' मौलिक वस्तु है, उसके बिना पवित्रता सम्भव ही नहीं । जब हमारा जीवन पवित्र होगा तब हम इस प्रार्थना के अधिकारी बनेंगे कि (शं गवे) = हमारी गौवों के लिए शान्ति हो, (शं जनाय) = हमारे जनों के लिए शान्ति हो, (शम् अर्वते) = हमारे घोड़ों के लिए शान्ति हो ।
(गौ+घोड़े) = यहाँ जन शब्द मध्य में है, उसके एक ओर गौ है और दूसरी ओर घोड़ा । गौ यदि मनुष्य का दाहिना हाथ है तो घोड़ा बाँया । मानव जीवन के ठीक विकास के लिए दोनों की ही आवश्यकता है। गौ अपने सात्त्विक दूध से मनुष्य की बुद्धि को सूक्ष्म बनाकर उसकी बलवृद्धि में सहायक होती है। गौ मनुष्य में ब्रह्म की तथा अश्व क्षत्र की वृद्धि करता है और यह कह सकता है कि (‘इदं मे ब्रह्म च क्षत्रं चोभे श्रियमश्नुताम्') = मेरे ब्रह्म और क्षत्र दोनों फूलें और फलें। यहाँ गौ शब्द ‘गमयन्ति अर्थान्' [=अर्थों का ज्ञान कराती हैं] इस व्युत्पत्ति से ज्ञानेन्द्रियों का भी वाचक है और अर्वन् शब्द ‘ अर्व गतौ' से बनकर कर्मेन्द्रियों का नाम है। मेरी ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ दोनों ही शान्त हों । इनकी शान्ति के लिए सात्त्विक भोजन के द्वारा पवित्रता का सम्पादन आवश्यक है।
वनस्पति भोजन- - इस सात्त्विक भोजन का संकेत ऊपर 'मधु व पय: ' शब्दों से हो है चुका । (पयः) = दूध, परन्तु दूध गौ का। गौ के दूध का संकेत इस मन्त्र के गवे शब्द से हो रहा है। इसके अतिरिक्त इस मन्त्र में प्रभु से प्रार्थना है कि (राजन्) = हे [राजृ - दीप्तौ] दीप्त प्रभो ! (ओषधीभ्यः) = ओषधियों से शम्=हमें शान्ति प्राप्त हो । वानस्पतिक भोजन करते हुए हम सदा शान्त स्वभाव के बनें। मांस-भोजन मनुष्य को क्रूर बना देता है । वनस्पति सात्त्विक है, मांस राजस् व तामस् है। वनस् का अर्थ Loveliness=प्रियता, सुन्दरता है । वानस्पतिक भोजन इस प्रियता को स्थिर रखता है ।
भावार्थ -
वनस्पति भोजन- - इस सात्त्विक भोजन का संकेत ऊपर 'मधु व पय: ' शब्दों से हो है चुका । (पयः) = दूध, परन्तु दूध गौ का। गौ के दूध का संकेत इस मन्त्र के गवे शब्द से हो रहा है। इसके अतिरिक्त इस मन्त्र में प्रभु से प्रार्थना है कि (राजन्) = हे [राजृ - दीप्तौ] दीप्त प्रभो ! (ओषधीभ्यः) = ओषधियों से शम्=हमें शान्ति प्राप्त हो । वानस्पतिक भोजन करते हुए हम सदा शान्त स्वभाव के बनें। मांस-भोजन मनुष्य को क्रूर बना देता है । वनस्पति सात्त्विक है, मांस राजस् व तामस् है। वनस् का अर्थ Loveliness=प्रियता, सुन्दरता है । वानस्पतिक भोजन इस प्रियता को स्थिर रखता है ।