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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 788
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
ये꣡ ते꣢ प꣣वि꣡त्र꣢मू꣣र्म꣡यो꣢ऽभि꣣क्ष꣡र꣢न्ति꣣ धा꣡र꣢या । ते꣡भि꣢र्नः सोम मृडय ॥७८८॥
स्वर सहित पद पाठये꣢ । ते꣣ । पवि꣡त्र꣢म् । ऊ꣣र्म꣡यः꣢ । अ꣣भिक्ष꣡र꣢न्ति । अ꣣भि । क्ष꣡र꣢꣯न्ति । धा꣡र꣢꣯या । ते꣡भिः꣢꣯ । नः꣣ । सोम । मृडय ॥७८८॥
स्वर रहित मन्त्र
ये ते पवित्रमूर्मयोऽभिक्षरन्ति धारया । तेभिर्नः सोम मृडय ॥७८८॥
स्वर रहित पद पाठ
ये । ते । पवित्रम् । ऊर्मयः । अभिक्षरन्ति । अभि । क्षरन्ति । धारया । तेभिः । नः । सोम । मृडय ॥७८८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 788
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
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विषय - प्रभु का प्रकाश
पदार्थ -
हे (सोम) = [स+उमा] = ज्ञानसहित प्रभो ! (ये) = जो (ते) = तेरे (ऊर्मय:) = ज्ञान के प्रकाश [Lights]= (धारया) - वेदवाणी के द्वारा अथवा धारण के हेतु से (पवित्रम् अभिक्षरन्ति) = हृदयाकाश को पवित्र करनेवाले की ओर [क्षर To flow] बहते हैं, (तेभिः) = उन प्रकाशों से (नः) = हमें (मृडय) = सुखी कीजिए । सब क्लेशों का मूल 'अविद्या' है । अज्ञान के कारण ही सब क्लेश - कष्ट हैं । क्लेशों से ऊपर उठने के लिए प्रकाश की आवश्यकता है। प्रभु ने इस प्रकाश को वेदवाणी में रक्खा है । वेदवाणी में निहित ये प्रकाश उस व्यक्ति को प्राप्त होते हैं, जो अपने हृदय को पवित्र बनाता है।
भावार्थ -
हम पवित्र बनें, प्रभु के प्रकाश को प्राप्त करें और सुखी जीवनवाले हों ।