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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 833
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
रा꣡जा꣢ मे꣣धा꣡भि꣢रीयते꣣ प꣡व꣢मानो म꣣ना꣡वधि꣢꣯ । अ꣣न्त꣡रि꣢क्षेण꣣ या꣡त꣢वे ॥८३३॥
स्वर सहित पद पाठरा꣡जा꣢꣯ । मे꣣धा꣡भिः꣢ । ई꣣यते । प꣡व꣢꣯मानः । म꣡नौ꣢ । अ꣡धि꣢꣯ । अ꣣न्त꣡रि꣢क्षेण । या꣡त꣢꣯वे ॥८३३॥
स्वर रहित मन्त्र
राजा मेधाभिरीयते पवमानो मनावधि । अन्तरिक्षेण यातवे ॥८३३॥
स्वर रहित पद पाठ
राजा । मेधाभिः । ईयते । पवमानः । मनौ । अधि । अन्तरिक्षेण । यातवे ॥८३३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 833
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - मध्यमार्ग से जाने के लिए
पदार्थ -
‘सोम' ही राजा है - यह शरीर को सभी दीप्तियाँ प्राप्त करानेवाला है । १. (राजा) = यह दीप्ति का कारणभूत सोम मनौ (अधि) = मननशील मनुष्य में २. (पवमान:) = पवित्रता करता हुआ ३. (मेधाभिः) = धारणावती बुद्धियों के साथ (ईयते) = प्राप्त होता है । ४. इन मेधाओं को वह (अन्तरिक्षेण यातवे) = हमें मध्यमार्ग से चलने के लिए प्राप्त कराता है । मेधावी मनुष्य अति का परिवर्जन करता हुआ मध्यमार्ग से ही चलता है ।
भावार्थ -
सोमरक्षा से १. हमें दीप्ति प्राप्त होगी । २. पवित्रता का लाभ होगा। ३. मेधावी बनकर ४. हम सदा मध्यमार्ग से चलेंगे।
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