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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 961
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
8
प्र꣡ सोमा꣢꣯सो अधन्विषुः꣣ प꣡व꣢मानास꣣ इ꣡न्द꣢वः । श्री꣣णाना꣢ अ꣣प्सु꣡ वृ꣢ञ्जते ॥९६१॥
स्वर सहित पद पाठप्र꣢ । सो꣡मा꣢꣯सः । अ꣣धन्विषुः । प꣡व꣢꣯मानासः । इ꣡न्द꣢꣯वः । श्री꣣णानाः꣢ । अ꣣प्सु꣢ । वृ꣣ञ्जते ॥९६१॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र सोमासो अधन्विषुः पवमानास इन्दवः । श्रीणाना अप्सु वृञ्जते ॥९६१॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र । सोमासः । अधन्विषुः । पवमानासः । इन्दवः । श्रीणानाः । अप्सु । वृञ्जते ॥९६१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 961
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
प्रस्तुत मन्त्र में विद्वान् उपदेशकों के गुणों का चित्रण हुआ है—१. (सोमासः) = सौम्य स्वभाववाले, २. (पवमानासः) = ज्ञानोपदेश से सबके जीवनों को पवित्र करनेवाले, ३. (इन्दवः) = ज्ञानरूप परमैश्वर्यवाले अथवा शक्तिशाली, ४. (अप्सु) = कर्मों में (श्रीणानाः) = अपना परिपाक करते हुए, ५. (प्र अधन्विषुः) = [धन्वतिर्गत्यर्थः–नि० २.१५.६४] गतिशील होते हैं और ६. (प्र वृञ्जते) लोगों को पाप-कर्मों से पृथक् करते हैं।
भावार्थ -
उपदेष्टा सदा सौम्य व परिपक्व विचारोंवाला ही होना चाहिए ।
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