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यजुर्वेद अध्याय - 2

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  • यजुर्वेद - अध्याय 2/ मन्त्र 24
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - त्वष्टा देवता छन्दः - विराट् त्रिष्टुप्, स्वरः - धैवतः
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    सं वर्च॑सा॒ पय॑सा॒ सं त॒नूभि॒रग॑न्महि॒ मन॑सा॒ सꣳ शि॒वेन॑। त्वष्टा॑ सु॒दत्रो॒ विद॑धातु॒ रायोऽनु॑मार्ष्टु त॒न्वो यद्विलि॑ष्टम्॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम्। वर्च॑सा। पय॑सा। सम्। त॒नूभिः॑। अग॑न्महि। मन॑सा। सम्। शि॒वेन॑। त्वष्टा॑। सु॒दत्र॒ इति॑ सु॒ऽदत्रः॑। वि। द॒धा॒तु॒। रायः॑। अनु॑। मा॒र्ष्टु॒। त॒न्वः᳕। यत्। विलि॑ष्ट॒मिति॒ विऽलि॑ष्टम् ॥२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सँवर्चसा पयसा सन्तनूभिरगन्महि मनसा सँ शिवेन । त्वष्टा सुदत्रो विदधातु रायोनुमार्ष्टु तन्वो यद्विलिष्टम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सम्। वर्चसा। पयसा। सम्। तनूभिः। अगन्महि। मनसा। सम्। शिवेन। त्वष्टा। सुदत्र इति सुऽदत्रः। वि। दधातु। रायः। अनु। मार्ष्टु। तन्वः। यत्। विलिष्टमिति विऽलिष्टम्॥२४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 2; मन्त्र » 24
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    पदार्थ -

    पदार्थ = ( वर्चसा ) = वेदों के स्वाध्याय और योगाभ्यास करने से प्राप्त जो ब्रह्मतेज ( पयसा ) = पुष्टिकारक दुग्ध घृतादि  ( तनूभिः ) = नीरोग शरीर और  ( शिवेन मनसा ) = कल्याणकारी पवित्र मन से ( सम् अगन्महि ) = सम्यक् संयुक्त रहें  ( सुदत्र: ) = श्रेष्ठ पदार्थों का दाता, ( त्वष्टा ) = जगत् उत्पादक प्रभु हमें  ( रायः ) = अनेक प्रकार का धन  ( विदधातु ) = प्रदान करे ।  ( तन्वः ) = हमारे शरीर में  ( यत् ) = जो विलिष्टम् विपरीत अनिष्ट, उपघातक पदार्थ हो उसको ( अनुमार्ष्टु ) = शुद्ध करें वा दूर करें ।
     

    भावार्थ -

    भावार्थ = हे जगत् पिता अनेक - उत्तम पदार्थों के प्रदाता परमेश्वर ! अपनी  अपार कृपा से, हमें वेदों के स्वाध्यायशील, शरीर की पुष्टि करनेवाले अनेक खाद्य पदार्थों के स्वामी, नीरोग ऐश्वर्य शरीरवाले और कल्याणकारी शूद्र मन से युक्त बनावें । हे सकल के स्वामी इन्द्र ! हम कभी दरिद्री, दीन, मलीन, पराधीन, रोगी न हों, किन्तु सुखी रहते हुए उत्तम-उत्तम पदार्थों के स्वामी हों।

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