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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1670
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - विष्णुः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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त्री꣡णि꣢ प꣣दा꣡ वि च꣢꣯क्रमे꣣ वि꣡ष्णु꣢र्गो꣣पा꣡ अदा꣢꣯भ्यः । अ꣢तो꣣ ध꣡र्मा꣢णि धा꣣र꣡य꣢न् ॥१६७०॥

स्वर सहित पद पाठ

त्री꣡णि꣢꣯ । प꣣दा꣢ । वि । च꣣क्रमे । वि꣡ष्णुः꣢꣯ । गो꣣पाः꣢ । गो꣣ । पाः꣢ । अ꣡दा꣢꣯भ्यः । अ । दा꣣भ्यः । अ꣡तः꣢꣯ । ध꣡र्मा꣢꣯णि । धा꣣र꣡य꣢न् ॥१६७०॥


स्वर रहित मन्त्र

त्रीणि पदा वि चक्रमे विष्णुर्गोपा अदाभ्यः । अतो धर्माणि धारयन् ॥१६७०॥


स्वर रहित पद पाठ

त्रीणि । पदा । वि । चक्रमे । विष्णुः । गोपाः । गो । पाः । अदाभ्यः । अ । दाभ्यः । अतः । धर्माणि । धारयन् ॥१६७०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1670
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

शब्दार्थ = जिस कारण यह परमेश्वर  ( अदाभ्यः ) = किसी से मारा नहीं जा सकता, ( गोपा ) = सब ब्रह्माण्डों की रक्षा करनेवाले सब जगतों को  ( धारयन् ) = धारण करनेवाले  ( विष्णुः ) = सर्वत्र व्यापक ईश्वर ने  ( त्रीणि पदा विचक्रमे ) = तीनों पृथिवी, अन्तरिक्ष द्युलोकों का विधान किया हुआ है।  ( अतो धर्माणि धारयन् ) = इस कारण सब धर्मों को वेद द्वारा धारण कर रहा है ।

भावार्थ -

भावार्थ = हे विष्णो ! आपने ही वेद द्वारा अग्निहोत्रादि धर्मों को तथा सृष्टि के सब पदार्थों को धारण कर रखा है, आपके धारण वा रक्षण के बिना, किसी धर्म वा पदार्थ का धारण वा रक्षण नहीं हो सकता। आप ही सब लोकों, धर्मों और जगत् व्यवहारों के उत्पादक, धारक और रक्षक हैं। ऐसे सर्वशक्तिमान् आप को, जान और ध्यान करके ही हम सुखी हो सकते हैं अन्यथा कदापि नहीं। 

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