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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1826
ऋषिः - अवत्सारः काश्यपः
देवता - विश्वे देवाः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम -
4
यो꣢ जा꣣गा꣢र꣣ त꣡मृचः꣢꣯ कामयन्ते꣣ यो꣢ जा꣣गा꣢र꣣ त꣢मु꣣ सा꣡मा꣢नि यन्ति । यो꣢ जा꣣गा꣢र꣣ त꣢म꣣य꣡ꣳ सोम꣢꣯ आह꣣ त꣢वा꣣ह꣡म꣢स्मि स꣣ख्ये꣡ न्यो꣢काः ॥१८२६॥
स्वर सहित पद पाठयः꣢ । जा꣣गा꣡र꣢ । तम् । ऋ꣡चः꣢꣯ । का꣢मयन्ते । यः꣢ । जा꣣गा꣡र꣢ । तम् । उ꣣ । सा꣡मा꣢꣯नि । य꣣न्ति । यः꣢ । जा꣣गा꣡र꣢ । तम् । अ꣣य꣢म् । सो꣡मः꣢꣯ । आ꣣ह । त꣡व꣢꣯ । अ꣣ह꣢म् । अ꣣स्मि । सख्ये꣢ । स꣡ । ख्ये꣢ । न्यो꣢काः । नि । ओ꣣काः ॥१८२६॥
स्वर रहित मन्त्र
यो जागार तमृचः कामयन्ते यो जागार तमु सामानि यन्ति । यो जागार तमयꣳ सोम आह तवाहमस्मि सख्ये न्योकाः ॥१८२६॥
स्वर रहित पद पाठ
यः । जागार । तम् । ऋचः । कामयन्ते । यः । जागार । तम् । उ । सामानि । यन्ति । यः । जागार । तम् । अयम् । सोमः । आह । तव । अहम् । अस्मि । सख्ये । स । ख्ये । न्योकाः । नि । ओकाः ॥१८२६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1826
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 6; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 6; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
शब्दार्थ = ( यो जागार ) = जो मनुष्य जागता है ( तम् ऋचः कामयन्ते ) = उस को ऋग्वेद के मन्त्र चाहते हैं ( यो जागार ) = जो जागता है ( तम् उ ) = उसको ही ( सामानि यन्ति ) = सामवेद के मन्त्र प्राप्त होते हैं ( यो जागार ) = जो जागता है ( तम् ) = उसको ( अयम् सोमःआह ) = यह सोमादि ओषधिगण कहता है कि ( अहम् न्योकः ) = मैं नियत स्थानवाला ( तव सख्ये अस्मि ) = तेरी मित्रता और अनुकूलता में वर्त्तमान हूं ।
भावार्थ -
भावार्थ = जो पुरुषार्थी जागरणशील हैं, उन को ही ऋक् साम आदि वेद फलीभूत होते हैं और सोम आदि ओषधियाँ हाथ जोड़े उसके सामने खड़ी रहती हैं कि हम सब आपके लिए प्रस्तुत हैं । जो पुरुष निद्रा से बहुत प्यार करनेवाले आलसी और उद्यमहीन हैं, उनको न तो वेदों का ज्ञान प्राप्त होता है न ओषधियें ही काम देती हैं। इसलिए हम सब को जागरणशील और उद्योगी बनना चाहिये।
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