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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 836
ऋषिः - कविर्भार्गवः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
तं꣡ त्वा꣢ नृ꣣म्णा꣢नि꣣ बि꣡भ्र꣢तꣳ स꣣ध꣡स्थे꣢षु म꣣हो꣢ दि꣣वः꣢ । चा꣡रु꣢ꣳ सुकृ꣣त्य꣡ये꣢महे ॥८३६॥
स्वर सहित पद पाठत꣢म् । त्वा꣣ । नृम्णा꣡नि꣢ । बि꣡भ्र꣢꣯तम् । स꣣ध꣡स्थे꣢षु । स꣣ध꣡ । स्थे꣣षु । महः꣢ । दि꣣वः꣢ । चा꣡रु꣢꣯म् । सु꣣कृत्य꣡या꣢ । सु꣣ । कृत्य꣡या꣢ । ई꣣महे ॥८३६॥
स्वर रहित मन्त्र
तं त्वा नृम्णानि बिभ्रतꣳ सधस्थेषु महो दिवः । चारुꣳ सुकृत्ययेमहे ॥८३६॥
स्वर रहित पद पाठ
तम् । त्वा । नृम्णानि । बिभ्रतम् । सधस्थेषु । सध । स्थेषु । महः । दिवः । चारुम् । सुकृत्यया । सु । कृत्यया । ईमहे ॥८३६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 836
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
शब्दार्थ = हे परमात्मन्! ( महोदिवः ) = अनन्त आकाश के ( सधस्थेषु ) = साथवाले सब लोकों में और उनसे भी बाहिर व्यापक ( नृम्णानि ) = धनों व बलों को ( बिभ्रतम् ) = धारते हुए ( चारुम् ) = आनन्द स्वरूप ( तम् त्वा ) = उस अनेक वैदिक सूक्तों से स्तुति किये हुए आपको ( सुकृत्यया ) = सुकर्म से ( ईमहे ) = हम पाते हैं।
भावार्थ -
भावार्थ = हे सर्वव्यापक परमात्मन्! इस बड़े आकाश में और इससे बाहिर भी आप व्यापक होकर, सब धन और बल को धारण करनेवाले आनन्द स्वरूप हो। ऐसे आपको उत्तम वैदिक कर्म करते हुए और वैदिक स्तोत्रों से ही आपकी स्तुति करते हुए हम प्राप्त होते हैं ।
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