यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 71
अ॒पां फेने॑न॒ नमु॑चेः॒ शिर॑ऽइ॒न्द्रोद॑वर्त्तयः। विश्वा॒ यदज॑यः॒ स्पृधः॑॥७१॥
स्वर सहित पद पाठअ॒पाम्। फेने॑न। नमु॑चेः। शिरः॑। इ॒न्द्र॒। उत्। अ॒व॒र्त्त॒यः॒। विश्वाः॑। यत्। अज॑यः। स्पृधः॑ ॥७१ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अपाम्फेनेन नमुचेः शिर इन्द्रोदवर्तयः । विश्वा यदजय स्पृधः ॥
स्वर रहित पद पाठ
अपाम्। फेनेन। नमुचेः। शिरः। इन्द्र। उत्। अवर्त्तयः। विश्वाः। यत्। अजयः। स्पृधः॥७१॥
विषय - अपां फेन से नमुचि के शिर के काटने का रहस्य ।
भावार्थ -
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवान् ! शत्रुविदारक ! वीर सेनापते ! राजन् ! ( यत् ) जब तू (विश्वाः) समस्त (स्पृधः) संग्राम में प्रतिस्पर्धा करने वाली शत्रु सेनाओं को (अजयः) विजय करता है तब (अपां फेनेन ) जिस प्रकार सूर्य, वायु या विद्युत् वर्षा योग्य जलों की वृद्धि करके ( नमुचेः ) जल न छोड़ने वाले मेघ के (शिरः) घनीभूत भाग को ( उत् अवर्त्तयः) छिन्न-भिन्न कर देता है उसी प्रकार राजा भी ( अपाम् ) प्रजा और आप्त पुरुषों के (फेनेन) बल की वृद्धि करके उससे ( नमुचेः) आग्रह और संग्राम भूमि को छोड़ने वाले शत्रु के (शिरः) शिर, सेना के मुख्य भाग को (उद् अवर्त्तयः) काट डाल | 'उद् अवर्त्तय: ' -उत् पूर्वो वृतिधातुर्छेदनेऽर्थे वर्त्तते इति उवटः | 'फेन : ' - स्पयायते वर्धते इति फेनः । दया० उणा० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अपां इन्द्रो देवता । गायत्री । षड्जः ॥
इस भाष्य को एडिट करेंAcknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal