यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 4
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - परमेश्वरो देवता
छन्दः - विकृतिः
स्वरः - मध्यमः
18
उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि प्र॒जाप॑तये त्वा॒ जुष्टं॑ गृह्णाम्ये॒ष ते॒ योनि॑श्च॒न्द्रमा॑स्ते महि॒मा। यस्ते॒ रात्राै॑ संवत्स॒रे म॑हि॒मा स॑म्ब॒भूव॒ यस्ते॑ पृथि॒व्याम॒ग्नौ म॑हि॒मा स॑म्ब॒भूव॒ यस्ते॒ नक्ष॑त्रेषु च॒न्द्रम॑सि महि॒मा स॑म्ब॒भूव॒ तस्मैं॑ ते महि॒म्ने प्र॒जाप॑तये दे॒वेभ्यः॒ स्वाहा॑॥४॥
स्वर सहित पद पाठउ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। त्वा॒। जुष्ट॑म्। गृ॒ह्णा॒मि॒। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। च॒न्द्रमाः॑। ते॒। म॒हि॒मा। यः। ते॒। रात्रौ॑। सं॒व॒त्स॒रे। म॒हि॒मा। स॒म्ब॒भूवेति॑ सम्ऽब॒भूव॑। यः। ते॒। पृ॒थि॒व्याम्। अ॒ग्नौ। म॒हि॒मा। स॒म्ब॒भूवेति॑ सम्ऽब॒भूव॑। यः। ते॒। नक्ष॑त्रेषु। च॒न्द्रम॑सि। म॒हि॒मा। स॒म्ब॒भूवेति॑ सम्ऽब॒भूव॑। तस्मै॑। ते॒। म॒हि॒म्ने। प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। दे॒वेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उपयामगृहीतो सि प्रजापतये त्वा जुष्टम्गृह्णाम्येष ते योनिश्चन्द्रस्ते महिमा । यस्ते रात्रौ सँवत्सरे महिमा सम्बभूव यस्ते पृथिव्यामग्नौ महिमा सम्बभूव यस्ते नक्षत्रेषु चन्द्रमसि महिमा सम्बभूव तस्मै ते महिम्ने प्रजापतये देवेभ्यः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। प्रजापतय इति प्रजाऽपतये। त्वा। जुष्टम्। गृह्णामि। एषः। ते। योनिः। चन्द्रमाः। ते। महिमा। यः। ते। रात्रौ। संवत्सरे। महिमा। सम्बभूवेति सम्ऽबभूव। यः। ते। पृथिव्याम्। अग्नौ। महिमा। सम्बभूवेति सम्ऽबभूव। यः। ते। नक्षत्रेषु। चन्द्रमसि। महिमा। सम्बभूवेति सम्ऽबभूव। तस्मै। ते। महिम्ने। प्रजापतय इति प्रजाऽपतये। देवेभ्यः। स्वाहा॥४॥
विषय - व्यवस्थाबद्ध राजा का चन्द्र, अग्नि, नक्षत्रों से तुलित महान् सामर्थ्यो का वर्णन । पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन ।
भावार्थ -
(उपयामगृहीतः असि० ) इत्यादि पूर्ववत् । हे राजन् ! (ते महिमा चन्द्रमाः) तेरे महान् सामर्थ्य का एक रूप चन्द्र है अर्थात् चन्द्र के समान सबको सुखी करता, रात्रि में भी प्रकाश और पहरेदारी करता है । (यः ते रात्रौ संवत्सरे महिमा) जो तेरा महान् सामर्थ्य रात्रि और संवत्सर में (सं बभूव) प्रकट होता है और (यः ते महिमा पृथिव्याम् सं बभूव) जो तेरा महान् सामर्थ्यं पृथिवी पर, अग्नि, शत्रुसाधक, नायक अग्रणी के रूप में प्रकट होता है, (यः ते महिमा) जो तेरा महान् सामर्थ्य (नक्षत्रेषु चन्द्रमसि) नक्षत्रों और उसके बीच में उपस्थित चन्द्रमा में (सं बभूव) प्रकट है, उस (ते प्रजापतये महिम्नः) तुझ प्रजापति के महान् सामर्थ्य और (देवेभ्यः) तेरे दिव्य गुणों के लिये (स्वाहा ) हम तेरा आदर सत्कार करते हैं । अर्थात् रात्रि में चन्द्र प्रकट हो उसको प्रकाशित करता है और रात्रिः चन्द्र को अधिक उज्ज्वल करती है इसी प्रकार ऐश्वर्यों को देने वाली, समस्त प्राणियों को रमण सुख कराने वाली, राजसभा, राष्ट्र शक्ति में राजा की महत्ता है । उत्तम राष्ट्रव्यवस्था राजा की महिमा है। चन्द्रमा संवत्सर में नाना रूप प्रकट करता है। वह मासों, पक्षों का प्रवर्त्तक है । उसी प्रकार जो संवत्सर, राष्ट्र है । उसमें सब प्राणी एकत्र सुख से रहते हैं, उसमें चन्द्र रूप राजा की महत्ता प्रकट है । पृथिवी पर अग्नि की महती सत्ता है, वह सबको भस्म करती है राजा पृथिवी पर प्रतिद्वन्द्वी शत्रुओं को भस्म करता है । नक्षत्रों के बीच में जैसे चन्द्र की शोभा है वैसे ही 'नक्षत्र' अर्थात् क्षत्रबल से रहित प्रजा के बीच क्षत्रिय राजा की शोभा है ।
परमेश्वर का महान् सामर्थ्य चन्द्रवत् है । उसका महान् सामर्थ्यं रात्रि में, संवत्सर में, पृथिवी में, अग्नि में, नक्षत्रों में, चन्द्रमा में, सभी दिव्य पदार्थों में विद्यमान है। उन्हीं दिव्य गुणों के लिये हम परमेश्वर स्तुति करें।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विकृतिः । मध्यमः ॥
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