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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 29
    ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः देवता - बृहस्पतिर्देवता छन्दः - गायत्री, स्वरः - षड्जः
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    यो रे॒वान् योऽअ॑मीव॒हा व॑सु॒वित् पु॑ष्टि॒वर्द्ध॑नः। स नः॑ सिषक्तु॒ यस्तु॒रः॥२९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः। रे॒वान्। यः। अ॒मी॒व॒हेत्य॑मीऽव॒हा। व॒सु॒विदिति॑ वसु॒ऽवित्। पु॒ष्टि॒वर्द्ध॑न॒ इति॑ पुष्टि॒ऽवर्द्ध॑नः। सः। नः॒। सि॒ष॒क्त्विति सिषक्तुः। यः। तु॒रः ॥२९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो रेवान्यो अमीवहा वसुवित्पुष्टिवर्धनः । स नः सिषक्तु यस्तुरः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यः। रेवान्। यः। अमीवहेत्यमीऽवहा। वसुविदिति वसुऽवित्। पुष्टिवर्द्धन इति पुष्टिऽवर्द्धनः। सः। नः। सिषक्त्विति सिषक्तुः। यः। तुरः॥२९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 29
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    भावार्थ -

    हे ब्रह्मणस्पते ! ( यः ) जो ( देवान् ) धनवान्, ऐश्वर्यवान्, (अमीवहा ) रोगों और शरीर और मानस दोषों को दूर करने हारा, ( वसुवित् ) धनों, रत्नों का ज्ञाता अथवा ( वसुवित् ) राष्ट्र के वासी समस्त प्रजाजनों का ज्ञाता या प्राप्त करने वाला, उनको अपनाने वाला या वसुवित् वासस्थान नगर ग्रामादि एवं लोक लोकान्तरों का ज्ञाता प्रातकर्त्ता, उन पर वशी, ( पुष्टिवर्धनः ) शरीरों की पुष्टि को बढ़ाने वाला, ईश्वर राजा, वैद्य या हितकारी पुत्र मित्र है और ( यः ) जो (तुः ) शीघ्रकारी, बिना विलम्ब के यथोचित काल में कार्य सम्पादन करता है ( सः ) वह (न: ) हमें (सिषक्तु ) प्राप्त हो, वह हमें संयोजित करे, संगठित करे, वह हमें मिलाये रखने में समर्थ है। धनादिसम्पन्न, रोग, दोष अपराधों को दूर करने में समर्थ प्रजापोषक प्रजारंजक, तुरन्त कार्यकर्त्ता अप्रमादी राजा हो वही प्रजा को संगठित कर सकता है। ईश्वर के प्रति विशेषण स्पष्ट हैं । उव्वट के मत में, उक्त विशेषणों वाला पुत्र हमें प्राप्त हो ॥ शत० २ । ३ । ४ । ३५ ॥ 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    ब्रह्मखस्पतिर्मेधातिथिर्वाऋषिः । ब्रह्मणस्पतिर्देवता । गायत्री । षड्जः ।

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