यजुर्वेद - अध्याय 31/ मन्त्र 12
च॒न्द्रमा॒ मन॑सो जा॒तश्चक्षोः॒ सूर्यो॑ऽअजायत।श्रोत्रा॑द्वा॒युश्च॑ प्रा॒णश्च॒ मुखा॑द॒ग्निर॑जायत॥१२॥
स्वर सहित पद पाठच॒न्द्रमाः॑। मन॑सः। जा॒तः। चक्षोः॑। सूर्यः॑। अ॒जा॒य॒त॒ ॥ श्रोत्रा॑त्। वा॒युः। च॒। प्रा॒णः। च॒। मुखा॑त्। अ॒ग्निः। अ॒जा॒य॒त॒ ॥१२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्याऽअजायत । श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत ॥
स्वर रहित पद पाठ
चन्द्रमाः। मनसः। जातः। चक्षोः। सूर्यः। अजायत॥ श्रोत्रात्। वायुः। च। प्राणः। च। मुखात्। अग्निः। अजायत॥१२॥
विषय - चन्द्र, सूर्य, वायु, अग्नि की कल्पना ।
भावार्थ -
प्रजापति के ब्रह्माण्डमय विराट् शरीर का वर्णन । (चन्द्रमाः) चन्द्र (मनसः ) मन रूप से (जातः) कल्पना किया गया है । अर्थात् जैसे शरीर में मन वैसे विराट् शरीर में चन्द्र । (सूर्य: चक्षोः अजायत) चक्षु से सूर्य को प्रकट किया जाता है । मानो उसकी आंख-सूर्य है । (श्रोत्रात् वायुः च प्राणः च) श्रोत्र से वायु और प्राण प्रकट किये जाते हैं । मानो श्रोत्र वायु और प्राण हैं । ( मुखाद्) मुख से (अग्निः अजायत) अग्नि को प्रकट किया जाता है, मानो अग्नि मुख है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अनुष्टुप् । गान्धारः ॥
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