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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वत्सप्रीर्ऋषिः देवता - अग्नयो देवताः छन्दः - स्वराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    अ॒स्याजरा॑सो द॒माम॒रित्रा॑ऽअ॒र्चद्धू॑मासोऽअ॒ग्नयः॑पाव॒काः।श्वि॒ती॒चयः॑ श्वा॒त्रा॒सो॑ भुर॒ण्यवो॑ वन॒र्षदो॑ वा॒यवो॒ न सोमाः॑॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्य। अ॒जरा॑सः। द॒माम्। अ॒रित्राः॑। अ॒र्चद्धू॑मास॒ इत्य॒र्चत्ऽधू॑मासः। अ॒ग्नयः॑। पा॒व॒काः ॥ श्वि॒ती॒चयः॑। श्वात्रासः॑। भु॒र॒ण्यवः॑। व॒न॒र्षदः॑। व॒न॒सद॒ इति॑ वन॒ऽसदः॑। वा॒यवः॑। न। सोमाः॑ ॥१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्याजरासो दमामरित्राऽअर्चद्धूमासोऽअग्नयः पावकाः । श्वितीचयः श्वात्रासो भुरण्यवो वनर्षदो वायवो न सोमाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अस्य। अजरासः। दमाम्। अरित्राः। अर्चद्धूमास इत्यर्चत्ऽधूमासः। अग्नयः। पावकाः॥ श्वितीचयः। श्वात्रासः। भुरण्यवः। वनर्षदः। वनसद इति वनऽसदः। वायवः। न। सोमाः॥१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 1
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    भावार्थ -
    ( अस्य ) इस राजा के राज्य और परमेश्वर की सृष्टि में (अग्नयः) अग्रणी, नेता पुरुष और अग्नि, विद्यत् आदि अति तीव्र ताप के पदार्थ ( पावका: ) दूसरों को पवित्र करने वाले ( दमाम् ) गृहों की (अरित्राः) शत्रुओं और रोगादि से रक्षा करने वाले और (अर्चद्धूमासः) उज्ज्वल, दीप्तियुक्त धूम वाले अग्नि के समान तेजस्वी बलशाली हों । वे ( श्वितीचयः) श्वेत पदार्थ चांदी, रजत, मुक्ता आदि ऐश्वर्य, यश और शुक्ल अर्थात् शुभ चरित्रों के सञ्चय करने हारे (श्वात्रासः) अति धनवान्, अथवा आलस्य रहित, शीघ्रता से कार्य करने वाले (भुरण्यवः) प्रजाओं के धारण पोषण करने वाले, (वनर्षदः) वन में रहने वाले, तपस्वी, सेवनीय, संवि- भक्त धनों, ऐश्वर्यो या गृहों में निवास करने वाले या रश्मियों में स्थित, सूर्य के समान तेजस्वी या जलों से अभिषिक्त, (वायवः न ) वायुओं के समान, बलवान् तीव्र (सोमाः) प्रेरक, जीवनप्रद, राष्ट्र के प्राणस्वरूप एवं ऐश्वर्यप्रद ( अजरासः) जरारहित युवा, बलवान् हों ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १ - १७ अग्निर्देवता । वत्सप्री ऋषिः । अग्नयः । विराट त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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