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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 148 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 148/ मन्त्र 4
    ऋषिः - पृथुर्वैन्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - स्वराट्आर्चीत्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इ॒मा ब्रह्मे॑न्द्र॒ तुभ्यं॑ शंसि॒ दा नृभ्यो॑ नृ॒णां शू॑र॒ शव॑: । तेभि॑र्भव॒ सक्र॑तु॒र्येषु॑ चा॒कन्नु॒त त्रा॑यस्व गृण॒त उ॒त स्तीन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मा । ब्रह्म॑ । इ॒न्द्र॒ । तुभ्य॑म् । शं॒सि॒ । दाः । नृऽभ्यः॑ । नृ॒णाम् । शू॒र॒ । शवः॑ । तेभिः॑ । भ॒व॒ । सऽक्र॑तुः । येषु॑ । चा॒कन् । उ॒त । त्रा॒य॒स्व॒ । गृ॒ण॒तः । उ॒त । स्तीन् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमा ब्रह्मेन्द्र तुभ्यं शंसि दा नृभ्यो नृणां शूर शव: । तेभिर्भव सक्रतुर्येषु चाकन्नुत त्रायस्व गृणत उत स्तीन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमा । ब्रह्म । इन्द्र । तुभ्यम् । शंसि । दाः । नृऽभ्यः । नृणाम् । शूर । शवः । तेभिः । भव । सऽक्रतुः । येषु । चाकन् । उत । त्रायस्व । गृणतः । उत । स्तीन् ॥ १०.१४८.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 148; मन्त्र » 4
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (शूर इन्द्र) हे पराक्रमी ऐश्वर्यवन् परमात्मन् ! (तुभ्यम्) तेरे लिए (इमा ब्रह्म) ये वेद के स्तुतिवचन (शंसि) शंसित किये जाते हैं-गाये जाते हैं (नृणाम्) जनों के मध्य (नृभ्यः) स्तुति करनेवाले जनों के लिए (शवः) धन को (दाः) दे, प्रदान कर (तेभिः) उनके साथ (सक्रतुः) समान सङ्कल्पवाला अर्थात् जो मन से कामना करें कि यह मेरे लिए हो यह मेरे लिए हो, इस प्रकार संकल्पों को पूरा करनेवाला (भव) तू हो (येषु चाकन्) जिन स्तुति करनेवालों में तू कामना करता है (उत) और (गृणतः) स्तुति करते हुए (उत स्तीन्) और मिले हुए सम्बन्धियों की (त्रायस्व) तू रक्षा कर ॥४॥

    भावार्थ - परमात्मा की वेदवचनों द्वारा स्तुति करना चाहिए, अन्यथा नहीं, जो परमात्मा की स्तुति करते हैं, उनके संकल्प के अनुसार परमात्मा उनकी कामना पूरी करता है तथा उनके सहयोगियों की परमात्मा रक्षा करता है ॥४॥

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