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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 149 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 149/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अर्चन्हैरण्यस्तुपः देवता - सविता छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स॒वि॒ता य॒न्त्रैः पृ॑थि॒वीम॑रम्णादस्कम्भ॒ने स॑वि॒ता द्याम॑दृंहत् । अश्व॑मिवाधुक्ष॒द्धुनि॑म॒न्तरि॑क्षम॒तूर्ते॑ ब॒द्धं स॑वि॒ता स॑मु॒द्रम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒वि॒ता । य॒न्त्रैः । पृ॒थि॒वीम् । अ॒र॒म्णा॒त् । अ॒स्क॒म्भ॒ने । स॒वि॒ता । द्याम् । अ॒दृं॒ह॒त् । अश्व॑म्ऽइव । अ॒धु॒क्ष॒त् । धुनि॑म् । अ॒न्तरि॑क्षम् । अ॒तूर्ते॑ । ब॒द्धम् । स॒वि॒ता । स॒मु॒द्रम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सविता यन्त्रैः पृथिवीमरम्णादस्कम्भने सविता द्यामदृंहत् । अश्वमिवाधुक्षद्धुनिमन्तरिक्षमतूर्ते बद्धं सविता समुद्रम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सविता । यन्त्रैः । पृथिवीम् । अरम्णात् । अस्कम्भने । सविता । द्याम् । अदृंहत् । अश्वम्ऽइव । अधुक्षत् । धुनिम् । अन्तरिक्षम् । अतूर्ते । बद्धम् । सविता । समुद्रम् ॥ १०.१४९.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 149; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (सविता) उत्पन्न करनेवाला परमात्मा या प्रेरित करनेवाला सूर्य (यन्त्रैः) नियन्त्रणसामर्थ्यों से (पृथिवीम्) पृथ्वी को (अस्कम्भने) निरालम्बन अन्तरिक्ष में (अरम्णात्) अवलम्बित करता है-सम्भालता है, जैसे गेंद को डोरियों से सम्भालता है (सविता) परमात्मा या सूर्य (द्याम्) द्युलोक को (अदृंहत्) दृढ़रूप में ऊपर तानता है (अतूर्ते-अन्तरिक्षम्) अच्छेद्य सूक्ष्म अचल अन्तरिक्ष में (बद्धम्) अवरुद्ध (समुद्रम्) सम्यक् भिगोनेवाले (धुनिम्) मेघ को (अश्वम्-इव) घोड़े को जैसे (अधुक्षत्) अश्वारोही-घुड़सवार जैसे उत्तेजित करता है-क्लेशित करता है या कम्पाता है ॥१॥

    भावार्थ - परमात्मा या सूर्य अपने नियन्त्रणसामर्थ्यों से निरालम्बन आकाश में पृथ्वी को रखता है या द्युलोक को तानता है, मेघ को आन्दोलित करता है बरसने के लिए ॥१॥

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