Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 170 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 170/ मन्त्र 1
    ऋषिः - विभ्राट् सूर्यः देवता - सूर्यः छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    वि॒भ्राड्बृ॒हत्पि॑बतु सो॒म्यं मध्वायु॒र्दध॑द्य॒ज्ञप॑ता॒ववि॑ह्रुतम् । वात॑जूतो॒ यो अ॑भि॒रक्ष॑ति॒ त्मना॑ प्र॒जाः पु॑पोष पुरु॒धा वि रा॑जति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒ऽभ्राट् । बृ॒हत् । पि॒ब॒तु॒ । सो॒म्यम् । मधु॑ । आयुः॑ । दध॑त् । य॒ज्ञऽप॑तौ । अवि॑ऽहुतम् । वात॑ऽजूतः । यः । अ॒भि॒ऽरक्ष॑ति । त्मना॑ । प्र॒ऽजाः । पु॒पो॒ष॒ । पु॒रु॒धा । वि । रा॒ज॒ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विभ्राड्बृहत्पिबतु सोम्यं मध्वायुर्दधद्यज्ञपतावविह्रुतम् । वातजूतो यो अभिरक्षति त्मना प्रजाः पुपोष पुरुधा वि राजति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विऽभ्राट् । बृहत् । पिबतु । सोम्यम् । मधु । आयुः । दधत् । यज्ञऽपतौ । अविऽहुतम् । वातऽजूतः । यः । अभिऽरक्षति । त्मना । प्रऽजाः । पुपोष । पुरुधा । वि । राजति ॥ १०.१७०.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 170; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 28; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (विभ्राट्) विशेषरूप से दीप्यमान सूर्य (बृहत् सोम्यं मधु) महान् सोम्य जीवनरस की (पिबतु) रक्षा करे (यज्ञपतौ) यज्ञ के कर्ता के निमित्त (अविह्रुतम्) अविच्छिन्न-निरन्तर (आयुः) जीवन को (दधत्) धारण करने को (वातजूतः) वायु से प्रेरित (त्मना-अभिरक्षति) स्वात्मा-स्वस्वरूप से संसार की रक्षा करता है (प्रजाः पुपोष) जड़-जङ्गम प्रजाओं को पुष्ट करता है-पोषित करता है (पुरुधा वि राजति) बहुत प्रकार से प्रकाशित होता है ॥१॥

    भावार्थ - सूर्य दीप्यमान पदार्थ है, महान् जीवनरस वनस्पतियों और प्राणियों में देता है, यज्ञ करनेवाले के निमित्त नीरोग आयु को देता है, वातसूत्रसमूहों से प्रेरित हुआ संसार की रक्षा करता है और प्रकाशित होता है ॥१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top