साइडबार
ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 186/ मन्त्र 2
उ॒त वा॑त पि॒तासि॑ न उ॒त भ्रातो॒त न॒: सखा॑ । स नो॑ जी॒वात॑वे कृधि ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । वा॒त॒ । पि॒ता । अ॒सि॒ । नः॒ । उ॒त । भ्राता॑ । उ॒त । नः॒ । सखा॑ । सः । नः॒ । जी॒वात॑वे । कृ॒धि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत वात पितासि न उत भ्रातोत न: सखा । स नो जीवातवे कृधि ॥
स्वर रहित पद पाठउत । वात । पिता । असि । नः । उत । भ्राता । उत । नः । सखा । सः । नः । जीवातवे । कृधि ॥ १०.१८६.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 186; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 44; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 44; मन्त्र » 2
पदार्थ -
(वात) हे वायु ! (नः) तू हमारा (उत पिता-असि) पालक है (उत भ्राता) बन्धु की भाँति भरणकर्त्ता है (उत नः सखा) और हमारा सहायकारी सर्वदुःखविनाशक है (सः) वह तू (नः) हमें (जीवातवे) जीवन के लिए (कृधि) सम्पन्न कर ॥२॥
भावार्थ - वायु पालक है, रक्षक है, पोषण कर्ता है, जीवन का साथी है, जीवन के लिए समर्थ बनाता है, उसका उचित रीति से सेवन करना चाहिये ॥२॥
इस भाष्य को एडिट करें