Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 25 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 25/ मन्त्र 11
    ऋषिः - विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्रः देवता - सोमः छन्दः - आस्तारपङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    अ॒यं विप्रा॑य दा॒शुषे॒ वाजाँ॑ इयर्ति॒ गोम॑तः । अ॒यं स॒प्तभ्य॒ आ वरं॒ वि वो॒ मदे॒ प्रान्धं श्रो॒णं च॑ तारिष॒द्विव॑क्षसे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । विप्रा॑य । दा॒शुषे॑ । वाजा॑न् । इ॒य॒र्ति॒ । गोऽम॑तः । अ॒यम् । स॒प्तऽभ्यः॑ । आ । वर॑म् । वि । वः॒ । मदे॑ । प्र । अ॒न्धम् । श्रो॒णम् । च॒ । ता॒रि॒ष॒त् । विव॑क्षसे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं विप्राय दाशुषे वाजाँ इयर्ति गोमतः । अयं सप्तभ्य आ वरं वि वो मदे प्रान्धं श्रोणं च तारिषद्विवक्षसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । विप्राय । दाशुषे । वाजान् । इयर्ति । गोऽमतः । अयम् । सप्तऽभ्यः । आ । वरम् । वि । वः । मदे । प्र । अन्धम् । श्रोणम् । च । तारिषत् । विवक्षसे ॥ १०.२५.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 25; मन्त्र » 11
    अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 12; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (अयम्) शान्तस्वरूप परमात्मा (दाशुषे विप्राय) स्वात्म-समर्पण-कर्ता स्तुति करनेवाले के लिये (गोमतः-वाजान्-इयर्त्ति) स्तुतियोग्य अमृत-अन्न भोगों को प्रदान करता है (अयं सप्तभ्यः) यह प्रगतिशील उपासकों के लिये (वरम्-आ) वरणीय मोक्ष-पद को प्राप्त कराता है। (अन्धं श्रोणं च प्र तारिषत्) भलीभाँति ध्यान करने योग्य और श्रवण करने योग्य उस मोक्षानन्द को बढ़ाता है (वः-मदे वि) हर्षनिमित्त विशेषरूप से हम तेरी स्तुति करते हैं (विवक्षसे) तू महान् है ॥११॥

    भावार्थ - स्वात्मसमर्पण-कर्ता उपासक के लिये परमात्मा प्रशंसनीय अमृत भोगों को प्रदान करता है। उन प्रगतिशील उपासकों के लिये श्रवण करने योग्य उत्कृष्ट वर मोक्षाननद को बढ़ाता है। उसकी स्तुति करनी चाहिये ॥११॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top