ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 30/ मन्त्र 2
ऋषिः - कवष ऐलूषः
देवता - आप अपान्नपाद्वा
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अध्व॑र्यवो ह॒विष्म॑न्तो॒ हि भू॒ताच्छा॒प इ॑तोश॒तीरु॑शन्तः । अव॒ याश्चष्टे॑ अरु॒णः सु॑प॒र्णस्तमास्य॑ध्वमू॒र्मिम॒द्या सु॑हस्ताः ॥
स्वर सहित पद पाठअध्व॑र्यवः । ह॒विष्म॑न्तः । हि । भू॒त । अच्छ॑ । अ॒पः । इ॒त॒ । उ॒श॒तीः । उ॒श॒न्तः॒ । अव॑ । याः । चष्टे॑ । अ॒रु॒णः । सु॒ऽप॒र्णः । तम् । आ । अ॒स्य॒ध्व॒म् । ऊ॒र्मिम् । अ॒द्य । सु॒ऽह॒स्ताः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अध्वर्यवो हविष्मन्तो हि भूताच्छाप इतोशतीरुशन्तः । अव याश्चष्टे अरुणः सुपर्णस्तमास्यध्वमूर्मिमद्या सुहस्ताः ॥
स्वर रहित पद पाठअध्वर्यवः । हविष्मन्तः । हि । भूत । अच्छ । अपः । इत । उशतीः । उशन्तः । अव । याः । चष्टे । अरुणः । सुऽपर्णः । तम् । आ । अस्यध्वम् । ऊर्मिम् । अद्य । सुऽहस्ताः ॥ १०.३०.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 30; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 24; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 24; मन्त्र » 2
पदार्थ -
(अध्वर्यवः) हे राजसूययज्ञ के अध्वर्यु आदि ऋत्विजों ! तुम (हविष्मन्तः-हि भूत) हविवाले होओ-हवि देने को अवश्य उद्यत होओ (उशतः-उशतीः-अपः-अच्छ-इत) निज राजसूययज्ञ को चाहनेवाले राजा के राजसूययज्ञ को चाहनेवाली तुम प्रजाओं ! साक्षात् यज्ञ में प्राप्त होओ, ऐसी घोषणा पुरोहित करे (अरुणः सुपर्णः-याः अवचष्टे) राजपद पर प्रकाशमान उत्तम पालनकर्ता नवीन राजा जिन प्रजाओं को अपनी जानता है (तम्-ऊर्मिम्-अद्य सुहस्ताः आ-अस्यध्वम्) उस जलों की उच्च तरङ्ग के समान ऊपर स्थित या आच्छादन करनेवाले-रक्षणकर्ता इस राजसूय अवसर देनेवाली प्रजाएँ उपहार ग्रहण करावें ॥२॥
भावार्थ - नवराजा के राजसूययज्ञ में ऋत्विग्जन आमन्त्रित हुए राजसूययज्ञ का आरम्भ करें और प्रजाजन भी उस राजसूययज्ञ में राजा को राजपद पर विराजमान हुए को देखें। वह राजा उन प्रजाओं का उत्तम पालन करने का लक्ष्य बनाकर उन्हें अपनावे। प्रजाएँ भी उसे विविध उपहार प्रदान करें ॥२॥
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