ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 39/ मन्त्र 1
यो वां॒ परि॑ज्मा सु॒वृद॑श्विना॒ रथो॑ दो॒षामु॒षासो॒ हव्यो॑ ह॒विष्म॑ता । श॒श्व॒त्त॒मास॒स्तमु॑ वामि॒दं व॒यं पि॒तुर्न नाम॑ सु॒हवं॑ हवामहे ॥
स्वर सहित पद पाठयः । वा॒म् । परि॑ऽज्मा । सु॒ऽवृत् । अ॒श्वि॒ना॒ । रथः॑ । दो॒षाम् । उ॒षसः॑ । हव्यः॑ । ह॒विष्म॑ता । श॒श्व॒त्ऽत॒मासः॑ । तम् । ऊँ॒ इति॑ । वा॒म् । इ॒दम् । व॒यम् । पि॒तुः । न । नाम॑ । सु॒ऽहव॑म् । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो वां परिज्मा सुवृदश्विना रथो दोषामुषासो हव्यो हविष्मता । शश्वत्तमासस्तमु वामिदं वयं पितुर्न नाम सुहवं हवामहे ॥
स्वर रहित पद पाठयः । वाम् । परिऽज्मा । सुऽवृत् । अश्विना । रथः । दोषाम् । उषसः । हव्यः । हविष्मता । शश्वत्ऽतमासः । तम् । ऊँ इति । वाम् । इदम् । वयम् । पितुः । न । नाम । सुऽहवम् । हवामहे ॥ १०.३९.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 39; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
विषय - यहाँ ‘अश्विनौ’ शब्द से अध्यापकोपदेशक, ओषधिशल्यचिकित्सक, स्त्रीपुरुष, आग्नेय सोम्य पदार्थ गृहीत हैं। राष्ट्र में शिक्षाप्रचार, रोगनिवारण, कुमार-कुमारियों का विवाहनिर्णय और याननिर्माण का वर्णन है।
पदार्थ -
(अश्विना) हे अध्यापक और उपदेशको ! या ज्योतिष्प्रधान और रसप्रधान आग्नेय सोम्य पदार्थ ! (वाम्) तुम दोनों का (यः) जो (परिज्मा सुवृत्-रथः) सर्वत्र जानेवाला पृथ्वी पर प्राप्त होनेवाला, सुख बर्तानेवाला, स्वभाव से आच्छादक गतिप्रवाह या यानविशेष (दोषाम्-उषसः) रात्रि और दिन में (हविष्मता हव्यः) ग्रहण करने योग्य वस्तुएँ जिनमें हैं, उस ऐसे श्रोतागण द्वारा ग्रहण करने योग्य है (वयं शश्वत्तमासः) हम अत्यन्त पूर्व से श्रवण करने के लिए वर्तमान हैं (तम्-उ-वां सुहवम्) तुम्हारे उस ही गतिप्रवाह या यानविशेष को (इदं नाम) इस प्रवचन या प्राप्त होने को (पितुः-न हवामहे) पालक राजा के रक्षण को ग्रहण करते हैं ॥१॥
भावार्थ - राजा के द्वारा पृथिवीभर पर-स्थान-स्थान पर अध्यापक और उपदेशक नियुक्त करने चाहिए, जिसका ज्ञानप्रवाह सब लोगों को श्रवण करने के लिए मिले और अपना जीवन सुखी बना सकें एवं आग्नेय तथा सोम्य पदार्थों के रथ-यानविशेष निर्माण कराकर प्रजामात्र को यात्रा का अवसर देकर सुखी बनाना चाहिए ॥१॥
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