ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 74/ मन्त्र 1
वसू॑नां वा चर्कृष॒ इय॑क्षन्धि॒या वा॑ य॒ज्ञैर्वा॒ रोद॑स्योः । अर्व॑न्तो वा॒ ये र॑यि॒मन्त॑: सा॒तौ व॒नंअ वा॒ ये सु॒श्रुणं॑ सु॒श्रुतो॒ धुः ॥
स्वर सहित पद पाठवसू॑नाम् । वा॒ । च॒र्कृ॒षे॒ । इय॑क्षन् । धि॒या । वा॒ । य॒ज्ञैः । वा॒ । रोद॑स्योः । अर्व॑न्तः । वा॒ । ये । र॒यि॒ऽमन्तः॑ । सा॒तौ । व॒नुम् । वा॒ । ये । सु॒ऽश्रुण॑म् । सु॒ऽश्रुतः॑ । धुरिति॒ धुः ॥
स्वर रहित मन्त्र
वसूनां वा चर्कृष इयक्षन्धिया वा यज्ञैर्वा रोदस्योः । अर्वन्तो वा ये रयिमन्त: सातौ वनंअ वा ये सुश्रुणं सुश्रुतो धुः ॥
स्वर रहित पद पाठवसूनाम् । वा । चर्कृषे । इयक्षन् । धिया । वा । यज्ञैः । वा । रोदस्योः । अर्वन्तः । वा । ये । रयिऽमन्तः । सातौ । वनुम् । वा । ये । सुऽश्रुणम् । सुऽश्रुतः । धुरिति धुः ॥ १०.७४.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 74; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 1
विषय - इस सूक्त में भी पूर्व की भाँति राजधर्म कहा है, विशेषतः प्रजारक्षण, शत्रुवध, उच्च अधिकारियों के लिए पुरस्कार प्रदान करना आदि विषय हैं।
पदार्थ -
(रोदस्योः) राजा और प्रजा के व्यवहारों में प्रसिद्ध अधिकारीजन (वसूनाम्-इयक्षन्) धनों को देने की इच्छा रखता हुआ तथा उन अधिकारियों के साथ वह (चर्कृषे) स्वसेना के कार्य को निमित्त बनाकर अपनी ओर खींचता है (धिया वा यज्ञैः-वा) तथा अन्य जनों के साथ ज्ञानप्रकाश द्वारा-अपने प्रज्ञान से या (ज्ञानप्रकाश को) निमित्त बनाकर तथा जनहित दानादि क्रिया को सामने रखकर आकृष्ट करता है (अर्वन्तः-वा) घोड़ेवाले सैनिक या (ये रयिमन्तः) वीर्यवान् पराक्रमी (सातौ) संग्राम में (ये सुश्रुतः) राष्ट्र में जो प्रसिद्ध योद्धा हैं (सुश्रुणं वनुं धुः) सुप्रसिद्ध हिंसक शत्रु सैन्य को धुनते हैं, नष्ट करते हैं। उनके द्वारा तथा अपने शौर्य को लक्ष्य करके पुरस्कारार्थ खींचता है ॥१॥
भावार्थ - राजा-प्रजा के व्यवहारों में प्रसिद्ध अधिकारियों को तथा संग्राम में बढ़नेवाले सैनिकों को, जो शत्रु पर विजय पाते हैं, उनको पुरस्कार प्रदान कर शासक सम्मानित करें ॥१॥
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