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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 77 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 77/ मन्त्र 1
    ऋषिः - स्यूमरश्मिर्भार्गवः देवता - मरूतः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒भ्र॒प्रुषो॒ न वा॒चा प्रु॑षा॒ वसु॑ ह॒विष्म॑न्तो॒ न य॒ज्ञा वि॑जा॒नुष॑: । सु॒मारु॑तं॒ न ब्र॒ह्माण॑म॒र्हसे॑ ग॒णम॑स्तोष्येषां॒ न शो॒भसे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भ्र॒ऽप्रुषः॑ । न । वा॒चा । प्रु॒ष॒ । वसु॑ । ह॒विष्म॑न्तः । न । य॒ज्ञाः । वि॒ऽजा॒नुषः॑ । सु॒ऽमारु॑तम् । न । ब्र॒ह्माण॑म् । अ॒र्हसे॑ । ग॒णम् । अ॒स्तो॒षि॒ । ए॒षा॒म् । न । शो॒भसे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभ्रप्रुषो न वाचा प्रुषा वसु हविष्मन्तो न यज्ञा विजानुष: । सुमारुतं न ब्रह्माणमर्हसे गणमस्तोष्येषां न शोभसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभ्रऽप्रुषः । न । वाचा । प्रुष । वसु । हविष्मन्तः । न । यज्ञाः । विऽजानुषः । सुऽमारुतम् । न । ब्रह्माणम् । अर्हसे । गणम् । अस्तोषि । एषाम् । न । शोभसे ॥ १०.७७.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 77; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 10; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (अभ्रप्रुषः-न) मेघ से सींचे जाते हुए जलबिन्दु जैसे प्राप्त होते हैं, वैसे (वाचा) स्तुति से प्रसन्न हुए जीवन्मुक्त विद्वान् (वसुप्रुष) ज्ञान-धनों से सींचते हैं (हविष्मन्तः) आहुतिवाले (यज्ञाः) यजमान लोग (न विजानुषः) सुख के विशेषरूप से उत्पन्न करनेवाले लोगों के लिए जैसे होते हैं, वैसे तुम सुख देओ (एषाम्) इन जीवन्मुक्तों को (ब्रह्माणम्) महान् (सुमारुतम्) व्यवस्थित (गणम्) मण्डल की (न अर्हसे) सम्प्रति प्रशंसा कर, उनके सत्कार के लिए (न शोभसे) सम्प्रति भाषण के लिए (अस्तोषि) प्रशंसा कर ॥१॥

    भावार्थ - जीवन्मुक्त महानुभावों की प्रशंसा करनी चाहिए, वे अपने अमृतभाषण को बरसाते हैं, जैसे मेघ जल बरसाते हैं ॥१॥

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