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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 15 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 15/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अग्निः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    उ॒प॒सद्या॑य मी॒ळ्हुष॑ आ॒स्ये॑ जुहुता ह॒विः। यो नो॒ नेदि॑ष्ठ॒माप्य॑म् ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒प॒ऽसद्या॑य । मी॒ळ्हुषे॑ । आ॒स्ये॑ । जु॒हु॒त॒ । ह॒विः । यः । नः॒ । नेदि॑ष्ठम् । आप्य॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपसद्याय मीळ्हुष आस्ये जुहुता हविः। यो नो नेदिष्ठमाप्यम् ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उपऽसद्याय। मीळ्हुषे। आस्ये। जुहुत। हविः। यः। नः। नेदिष्ठम्। आप्यम् ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 15; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 18; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    ( यः ) जो ( नः ) हमारे ( नेदिष्ठम् ) अति समीप ( आप्यम् ) प्राप्त करने योग्य, बन्धुत्व, सौहार्द आदि प्राप्त करता उस ( उप-सद्याय ) उपासना करने योग्य ( मीढुषे ) सुख और शान्ति के वर्षक विद्वान् पुरुष के ( आस्ये ) मुख में ( हविः ) अन्न का ( जुहुत ) त्याग करो । उसका अन्नादि ग्राह्य और दान योग्य पदार्थों से सत्कार करो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठ ऋषिः ।। अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १, ३, ७, १०, १२, १४ विराड्गायत्री । २, ४, ५, ६, ९, १३ गायत्री । ८ निचृद्गायत्री । ११ ,१५ आर्च्युष्णिक् ।। पञ्चदशर्चं सूकम् ॥

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