Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 73 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 73/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    उप॑ स्तृणीत॒मत्र॑ये हि॒मेन॑ घ॒र्मम॑श्विना । अन्ति॒ षद्भू॑तु वा॒मव॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ । स्तृ॒णी॒त॒म् । अत्र॑ये । हि॒मेन॑ । घ॒र्मम् । अ॒श्वि॒ना॒ । अन्ति॑ । सत् । भू॒तु॒ । वा॒म् । अवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उप स्तृणीतमत्रये हिमेन घर्ममश्विना । अन्ति षद्भूतु वामव: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उप । स्तृणीतम् । अत्रये । हिमेन । घर्मम् । अश्विना । अन्ति । सत् । भूतु । वाम् । अवः ॥ ८.७३.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 73; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    ( अत्रये ) विविध तापों से निवृत्त होने के लिये हे (अश्विना ) अश्वोंवत् इन्द्रियों के संयमी जनो ! ( धर्मम् हिमेन ) दाह को शीतल जल से जिस प्रकार दूर किया जाता है उसी प्रकार सन्तप्त जन को शीतल चचन से ( उप स्तृणीतम् ) आच्छादित करो, उसका आदर सत्कार करो। ( वां अन्ति अवः सद् भूतु ) आप लोगों का सत् ज्ञान, व्यवहार हमें भी सदा प्राप्त हो।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, २, ४, ५, ७, ९–११, १६—१८ गायत्री। ३, ८, १२—१५ निचृद गायत्री। ६ विराड गायत्री॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top