ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 2/ मन्त्र 1
पव॑स्व देव॒वीरति॑ प॒वित्रं॑ सोम॒ रंह्या॑ । इन्द्र॑मिन्दो॒ वृषा वि॑श ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑स्व । दे॒व॒ऽवीः । अति॑ । प॒वित्र॑म् । सो॒म॒ । रंह्या॑ । इन्द्र॑म् । इ॒न्दो॒ इति॑ । वृषा॑ । आ । वि॒श॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवस्व देववीरति पवित्रं सोम रंह्या । इन्द्रमिन्दो वृषा विश ॥
स्वर रहित पद पाठपवस्व । देवऽवीः । अति । पवित्रम् । सोम । रंह्या । इन्द्रम् । इन्दो इति । वृषा । आ । विश ॥ ९.२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
विषय - सोम पवमान।
भावार्थ -
हे (इन्दो) इस प्रकार से विनीत होकर गुरु की परिचर्या करने वाले ! हे (सोम) विद्यार्थिन् ! ब्रह्मचारिन् ! सोम्य ! ज्ञानोपासक ! तू (देव-वीः) ज्ञान दाता को प्राप्त होने वाला होकर (पवित्रं) पवित्र करने वाले (इन्द्रम्) तत्वदर्शी, वाणी के नियमों को खोल कर बताने वाले गुरु को (रंह्या) वेग से, अनालसी होकर (अति पवस्व) अपने को खूब पवित्र कर। और तू (वृषा) बलवान् होकर (इन्द्रम् आविश) उस आचार्य को प्राप्त हो। (२) इसी प्रकार ऐश्वर्यवान् राजा देव, विद्वानों को प्राप्त कर पवित्र इन्द्र-पद को प्राप्त करे और बलवान् होकर ऐश्वर्ययुक्त राष्ट्र पद पर विराजे।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - मेधातिथिऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, ४, ६ निचृद् गायत्री। २, ३, ५, ७―९ गायत्री। १० विराड् गायत्री॥ दशर्चं सूक्तम्॥
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