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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 35 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 35/ मन्त्र 2
    ऋषिः - प्रभुवसुः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्दो॑ समुद्रमीङ्खय॒ पव॑स्व विश्वमेजय । रा॒यो ध॒र्ता न॒ ओज॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्दो॒ इति॑ । स॒मु॒द्र॒म्ऽई॒ङ्ख॒य॒ । पव॑स्व । वि॒श्व॒म्ऽए॒ज॒य॒ । रा॒यः । ध॒र्ता । नः॒ । ओज॑सा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्दो समुद्रमीङ्खय पवस्व विश्वमेजय । रायो धर्ता न ओजसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्दो इति । समुद्रम्ऽईङ्खय । पवस्व । विश्वम्ऽएजय । रायः । धर्ता । नः । ओजसा ॥ ९.३५.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 35; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    हे (समुद्रम् ईङ्खय) समुद्रों के समान अपार सैन्यों के सञ्चालक स्वामिन् ! हे (विश्वम्-एजय) विश्व के सञ्चालक प्रवर्त्तक प्रभो ! तू (धर्त्ता) सब का धारक पोषक और हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! आर्द्र स्नेहिन् ! तू (नः ओजसा) हमें बल पराक्रम से (रायः पवस्व) नाना ऐश्वर्य प्रदान कर।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - प्रभूवसुर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, २, ४–६ गायत्री। ३ विराड् गायत्री॥

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