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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 176
ऋषिः - गोधा ऋषिका देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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न꣡कि꣢ देवा इनीमसि꣣ न꣡ क्या यो꣢꣯पयामसि । म꣣न्त्र꣡श्रु꣢त्यं चरामसि ॥१७६॥

स्वर सहित पद पाठ

न꣢ । कि꣣ । देवाः । इनीमसि । न꣢ । कि꣣ । आ꣢ । यो꣣पयामसि । मन्त्रश्रु꣡त्य꣢म् । म꣣न्त्र । श्रु꣡त्य꣢꣯म् । च꣣रामसि ॥१७६॥


स्वर रहित मन्त्र

नकि देवा इनीमसि न क्या योपयामसि । मन्त्रश्रुत्यं चरामसि ॥१७६॥


स्वर रहित पद पाठ

न । कि । देवाः । इनीमसि । न । कि । आ । योपयामसि । मन्त्रश्रुत्यम् । मन्त्र । श्रुत्यम् । चरामसि ॥१७६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 176
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 7;
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भावार्थ -

भा० = हे इन्द्र ! ( देवा: ) = हम इन्द्रियगण ( नकि इनीमसि ) = कुछ भी बधादि नहीं करते, ( नकिआयोपयामसि ) = और न कुछ भूल करते हैं। ( मन्त्रश्रुत्यं ) = मनन संकल्प द्वारा जो कुछ हम सुन सकते हैं तदनुसार हम ( चरामसि ) = आचरण करते हैं। प्रजा लोकों के पक्ष में- हम मंत्र और श्रुति वेद के अनुसार चले। हम दोष न करें । 

ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

 

ऋषिः - गोधा ।

देवता - इन्द्रः।

छन्दः - गायत्री।

स्वरः - षड्जः। 

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