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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 526
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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अ꣣स्य꣢ प्रे꣣षा꣢ हे꣣म꣡ना꣢ पू꣣य꣡मा꣢नो दे꣣वो꣢ दे꣣वे꣢भिः꣣ स꣡म꣢पृक्त꣢ र꣡स꣢म् । सु꣣तः꣢ प꣣वि꣢त्रं꣣ प꣡र्ये꣢ति꣣ रे꣡भ꣢न्मि꣣ते꣢व꣣ स꣡द्म꣢ पशु꣣म꣢न्ति꣣ हो꣡ता꣢ ॥५२६॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣स्य꣢ । प्रे꣣षा꣢ । हे꣣म꣡ना꣢ । पू꣣य꣡मा꣢नः । दे꣣वः꣢ । दे꣣वे꣡भिः꣣ । सम् । अ꣣पृक्त । र꣡स꣢꣯म् । सु꣣तः꣢ । प꣣वि꣢त्र꣢म् । प꣡रि꣢꣯ । ए꣣ति । रे꣡भ꣢꣯न् । मि꣣ता꣢ । इ꣣व । स꣡द्म꣢꣯ । प꣣शुम꣡न्ति꣢ । हो꣡ता꣢꣯ ॥५२६॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्य प्रेषा हेमना पूयमानो देवो देवेभिः समपृक्त रसम् । सुतः पवित्रं पर्येति रेभन्मितेव सद्म पशुमन्ति होता ॥५२६॥
स्वर रहित पद पाठ
अस्य । प्रेषा । हेमना । पूयमानः । देवः । देवेभिः । सम् । अपृक्त । रसम् । सुतः । पवित्रम् । परि । एति । रेभन् । मिता । इव । सद्म । पशुमन्ति । होता ॥५२६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 526
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 6;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 6;
Acknowledgment
विषय - "Missing"
भावार्थ -
भा० = ( अस्य ) = इस विद्वान् आत्मा के ( प्रेषा ) = प्रेरण करने वाले ( हेमना ) = स्वर्ण के समान कान्ति वाले तेज से ( पूयमानः ) = पवित्र, परिशुद्ध होता हुआ ( देवः ) = अति दीप्तिमान्, या सबको आनन्दरस का देने हारा ( देवेभिः ) = इन्द्रियगण के साथ ( रसं ) = आनन्द रस का ( सम् अपृक्त ) = सम्पर्क करा देता है । उस समय ( सुतः ) = वह प्रकट होकर ( रेभन् ) = उपदेश करते हुए ज्ञाता के समान अनाहत ध्वनि करता हुआ ( पवित्रम् ) = परम पावन पद को ( परि एति ) = प्राप्त होता है और ( मिता इव ) = जिस प्रकार कार्यकर्त्ता आकर ( पशुमान्त ) = पशुओं से युक्त ( सद्म ) = घर में आता है और पशुको जोतकर रथ में लगाता है उसी प्रकार वह ( होता ) = साधक ( मिता ) = ज्ञानी होकर ( पशुमन्ति ) = पशुरूप इन्द्रियगण से युक्त ( सद्म ) = इस शरीर को ( परि एति ) = पूर्ण वश कर लेता है। सोमरस के प्रादुर्भाव होने पर साधक की वृत्तियां स्वयं संसार के भोगों से विरत होकर आत्मानन्द में लग जाती हैं, उसी दशा को दर्शाया गया है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुण:।
देवता - पवमानः।
छन्दः - त्रिष्टुप्।
स्वरः - धैवतः।
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