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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 543
ऋषिः - कश्यपो मारीचः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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अ꣡स꣢र्जि꣣ व꣢क्वा꣣ र꣢थ्ये꣣ य꣢था꣣जौ꣢ धि꣣या꣢ म꣣नो꣡ता꣢ प्रथ꣣मा꣡ म꣢नी꣣षा꣣ । द꣢श꣣ स्व꣡सा꣢रो꣣ अ꣢धि꣣ सा꣢नो꣣ अ꣡व्ये꣢ मृ꣣ज꣢न्ति꣣ व꣢ह्नि꣣ꣳ स꣡द꣢ने꣣ष्व꣡च्छ꣢ ॥५४३॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡स꣢꣯र्जि । व꣡क्वा꣢꣯ । र꣡थ्ये꣢꣯ । य꣡था꣢꣯ । आ꣣जौ꣢ । धि꣣या꣢ । म꣣नो꣡ता꣢ । प्र꣣थमा꣢ । म꣣नीषा꣢ । द꣡श꣢꣯ । स्व꣡सा꣢꣯रः । अ꣡धि꣢꣯ । सा꣡नौ꣢꣯ । अ꣡व्ये꣢꣯ । मृ꣣ज꣡न्ति꣢ । व꣡ह्नि꣢꣯म् । स꣡द꣢꣯नेषु । अ꣡च्छ꣢꣯ ॥५४३॥
स्वर रहित मन्त्र
असर्जि वक्वा रथ्ये यथाजौ धिया मनोता प्रथमा मनीषा । दश स्वसारो अधि सानो अव्ये मृजन्ति वह्निꣳ सदनेष्वच्छ ॥५४३॥
स्वर रहित पद पाठ
असर्जि । वक्वा । रथ्ये । यथा । आजौ । धिया । मनोता । प्रथमा । मनीषा । दश । स्वसारः । अधि । सानौ । अव्ये । मृजन्ति । वह्निम् । सदनेषु । अच्छ ॥५४३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 543
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 11
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 7;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 11
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 7;
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विषय - "Missing"
भावार्थ -
भा० = ( यथा ) = जिस प्रकार ( रथ्ये ) = रथों से विजय करने योग्य ( आजौ ) = संग्राम में ( धिया ) = प्रज्ञा और कर्म के विचारपूर्वक ( वक्का ) = सबको वचनोपदेश या आज्ञा करने वाला सेनापति ( असर्जि ) = नियत किया जाता है, उसी प्रकार इस ( रथ्ये ) = शरीर -साधना योग्य अथवा परमरस के प्राप्त करने वाले एक से दूसरे देह में जाने वाले आत्मा के हितकारी ( आजौ ) = योग साधनों के यज्ञ रूप संग्राम में ( घिया ) = ध्यान, धारणा द्वारा ( वक्का ) = ओंकारादि जप और स्तुति मन्त्रों को बोलने वाला साधक ही ( असर्जि ) = सेनापति के रूप में नियत किया गया है। वह स्वयं ( प्रथमा ) = सबसे श्रेष्ठ, ( मनीषा ) = मन या मनन करने हारे साधन की ईंषा-प्रेरणा, चेष्टा की आश्रय चित्त शक्ति है जिसमें ( मनोता ) = मनकी सब वृत्तियां ओत प्रोत हैं । ( अधि सानो ) = अति उन्नत प्रदेश में ( दश स्वसारः ) = दश बहनों के समान एक ही आश्रय रूप आत्मा के अधीन स्वयं सरण करने हारी दश प्राण वृत्तियां ( वह्नि ) = सबके बहन करने वाले आत्मा को ( मृजन्ति ) = परिष्कृत, सुशोभित करती हैं और ( सदनेषु ) = अपने २ स्थानों में ( अच्छ ) = प्राप्त होती हैं।
टिप्पणी -
५४३ – 'प्रथमो मनीषा ' 'सदनानि' इमि ऋ० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -
ऋषिः - कश्यपो मारीचः।
देवता - पवमानः।
छन्दः - त्रिष्टुप्।
स्वरः - धैवतः।
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