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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 770
ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
आ꣡दी꣢ꣳ ह꣣ꣳसो꣡ यथा꣢꣯ ग꣣णं꣡ विश्व꣢꣯स्यावीवशन्म꣣ति꣢म् । अ꣢त्यो꣣ न꣡ गोभि꣢꣯रज्यते ॥७७०॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢त् । ई꣣म् । हꣳसः꣢ । य꣡था꣢꣯ । ग꣣ण꣢म् । वि꣡श्व꣢꣯स्य । अ꣣वीवशत् । मति꣢म् । अ꣡त्यः꣢꣯ । न । गो꣡भिः꣢꣯ । अ꣣ज्यते ॥७७०॥
स्वर रहित मन्त्र
आदीꣳ हꣳसो यथा गणं विश्वस्यावीवशन्मतिम् । अत्यो न गोभिरज्यते ॥७७०॥
स्वर रहित पद पाठ
आत् । ईम् । हꣳसः । यथा । गणम् । विश्वस्य । अवीवशत् । मतिम् । अत्यः । न । गोभिः । अज्यते ॥७७०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 770
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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विषय - "Missing"
भावार्थ -
भा० = ( २ ) ( आत् ) = और ( गणं ) = उत्पन्न होने वाले ( ईं ) = इस शरीरगत प्राणगण को ( हंस: ) = आत्मा ( यथा ) = जिस प्रकार से ( अवावशत् ) = वश करता है उसी प्रकार वह परमात्मा ( विश्वस्य ) = समस्त संसार के ( मतिं ) = मनों को भी ( अवीवशत् ) = वश करता है । और ( अत्यः न ) = जिस प्रकार अश्व ( गोभिः ) = नाना प्रकार की चालों से ( अज्यते ) = अपने गुण प्रकट करता है उसी प्रकार वह आत्मा अपनी इन्द्रियों की नाना सुख, दुःख, ज्ञान आदि गतियों से और वह प्रभु अपने बनाये गतिशील पिण्डों और वेदवाणियों से अपनी सत्ता और स्वरूप को प्रकट करता है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिः - श्यावाश्व: । देवता -सोम:। छन्द: - गायत्री । स्वरः - षड्ज:।
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