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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 793
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
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मि꣣त्रं꣢ व꣣य꣡ꣳ ह꣢वामहे꣣ व꣡रु꣢ण꣣ꣳ सो꣡म꣢पीतये । या꣢ जा꣣ता꣢ पू꣣त꣡द꣢क्षसा ॥७९३॥
स्वर सहित पद पाठमि꣣त्र꣢म् । मि꣣ । त्र꣢म् । व꣣य꣢म् । ह꣣वामहे । व꣡रु꣢꣯णम् । सो꣡म꣢꣯पीतये । सो꣡म꣢꣯ । पी꣣तये । या꣢ । जा꣡ता꣢ । पू꣣त꣡द꣢क्षसा । पू꣣त꣢ । द꣣क्षसा ॥७९३॥
स्वर रहित मन्त्र
मित्रं वयꣳ हवामहे वरुणꣳ सोमपीतये । या जाता पूतदक्षसा ॥७९३॥
स्वर रहित पद पाठ
मित्रम् । मि । त्रम् । वयम् । हवामहे । वरुणम् । सोमपीतये । सोम । पीतये । या । जाता । पूतदक्षसा । पूत । दक्षसा ॥७९३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 793
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - missing
भावार्थ -
(वयं) हम लोग (सोमपीतये) समाधि से उत्पन्न होने वाले उस ब्रह्मानन्द रस का पान करने के लिये (मित्रं) स्नेह करने योग्य प्राण, मन, चित्त और (वरुणं) शरीर के विघ्नों का वारण करने हारे अपान को (हवामहे) परस्पर में आहुति देते या उनको वश करते हैं। (या) जो दोनों (पूतदक्षसा) पवित्र कर्म करने हारे, मल के शोधक होकर (जाता) विद्यमान एवं प्रकट हैं।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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